जैन धर्म के पहले तीर्थंकर ऋषभदेव थे। उन्हें आदिनाथ के नाम से भी जाना जाता है, जिसका अर्थ है "प्रथम भगवान" या "पहले प्रभु"। जैन धर्म की मान्यताओं के अनुसार, ऋषभदेव ने वर्तमान कालचक्र के पहले युग में जन्म लिया था और उन्होंने लोगों को ज्ञान और मोक्ष का मार्ग दिखाया।
जन्म और परिवार: जैन ग्रंथों के अनुसार, ऋषभदेव का जन्म इक्ष्वाकु वंश में अयोध्या में हुआ था। उनके पिता का नाम राजा नाभिराज और माता का नाम मरुदेवी था।
जीवन और शिक्षा: ऋषभदेव ने गृहस्थ जीवन त्यागकर संन्यास ग्रहण किया और कठोर तपस्या की। अंततः उन्हें कैवल्य ज्ञान (सर्वज्ञता) प्राप्त हुआ, जिसके बाद उन्होंने जैन धर्म के सिद्धांतों का प्रचार किया। उन्होंने लोगों को अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह जैसे पंच महाव्रतों का पालन करने का उपदेश दिया।
प्रतीक: ऋषभदेव का प्रतीक बैल है, जो शक्ति, दृढ़ता और धर्म के प्रति समर्पण का प्रतीक है।
महत्व: ऋषभदेव जैन धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण हैं क्योंकि उन्हें धर्म की स्थापना और मानव सभ्यता के विकास में महत्वपूर्ण योगदान देने वाला माना जाता है। उन्होंने लोगों को कृषि, कला, और सामाजिक संगठन के बारे में शिक्षा दी।
मंदिर: ऋषभदेव को समर्पित कई मंदिर भारत में स्थित हैं, जिनमें राजस्थान में स्थित ऋषभदेव मंदिर प्रमुख है।
संक्षेप में, ऋषभदेव जैन धर्म के पहले तीर्थंकर थे, जिन्होंने लोगों को ज्ञान और मोक्ष का मार्ग दिखाया और मानव सभ्यता के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
Answered :- 2022-12-09 07:14:18
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