गुप्त वंश का अवनति काल 467 ईसवी से 540 ईसवी तक माना जाता है। यह वह समय था जब शक्तिशाली गुप्त साम्राज्य कमजोर होने लगा था और अंततः कई छोटे राज्यों में विभाजित हो गया।
अवनति के कारण:
कमजोर उत्तराधिकारी: स्कंदगुप्त (455-467 ईस्वी) के बाद, गुप्त साम्राज्य को संभालने के लिए उतने शक्तिशाली शासक नहीं हुए। कमजोर उत्तराधिकारियों ने साम्राज्य के प्रशासन को प्रभावी ढंग से चलाने में असमर्थता दिखाई।
हूण आक्रमण: मध्य एशिया से हूणों के आक्रमण ने गुप्त साम्राज्य को बुरी तरह प्रभावित किया। हूणों ने उत्तर-पश्चिम भारत पर आक्रमण किया और गुप्त साम्राज्य को उनसे लड़ने में बहुत अधिक संसाधन खर्च करने पड़े, जिससे साम्राज्य की आर्थिक और सैन्य शक्ति कमजोर हो गई।
सामंतों का उदय: गुप्त राजाओं ने अपने साम्राज्य को चलाने के लिए सामंतों (स्थानीय शासकों) पर बहुत अधिक निर्भरता रखी। जैसे-जैसे केंद्रीय सत्ता कमजोर होती गई, ये सामंत अधिक शक्तिशाली होते गए और उन्होंने अपनी स्वतंत्रता की घोषणा कर दी, जिससे साम्राज्य का विघटन होने लगा।
आर्थिक संकट: लगातार युद्धों और कमजोर प्रशासन के कारण गुप्त साम्राज्य की अर्थव्यवस्था कमजोर हो गई। व्यापार में गिरावट आई और करों का संग्रह मुश्किल हो गया, जिससे साम्राज्य की वित्तीय स्थिति खराब हो गई।
धार्मिक कारण: बौद्ध धर्म के विकास और वैष्णववाद और शैव धर्म जैसे अन्य धर्मों के उदय ने भी गुप्त साम्राज्य को कमजोर किया।
अवनति के परिणाम:
छोटे राज्यों का उदय: गुप्त साम्राज्य के पतन के बाद, भारत कई छोटे राज्यों में विभाजित हो गया, जैसे कि मैत्रक, मौखरी, वर्धन, और चालुक्य।
राजनीतिक अस्थिरता: गुप्त साम्राज्य के पतन से राजनीतिक अस्थिरता आई, जिससे भारत पर विदेशी आक्रमणों का खतरा बढ़ गया।
सांस्कृतिक निरंतरता: गुप्त साम्राज्य के पतन के बावजूद, गुप्त काल की सांस्कृतिक विरासत जीवित रही और बाद के राज्यों को प्रभावित करती रही। कला, साहित्य, विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में गुप्त काल में हुई प्रगति भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है।
इस प्रकार, 467 ईसवी से 540 ईसवी तक का समय गुप्त साम्राज्य के लिए पतन का काल था, जिसके परिणामस्वरूप साम्राज्य का विघटन और भारत में राजनीतिक अस्थिरता आई।
Answered :- 2022-12-09 15:30:52
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