जैन धर्म ने अपने आध्यात्मिक विचारों को सांख्य दर्शन से ग्रहण किया था, लेकिन यह संबंध केवल कुछ पहलुओं तक ही सीमित है। जैन धर्म ने सांख्य दर्शन से द्वैतवाद (Dualism) और प्रकृति तथा पुरुष के सिद्धांतों को अपनाया, जहाँ प्रकृति भौतिक जगत का प्रतिनिधित्व करती है और पुरुष चेतना का।
सांख्य दर्शन के अनुसार, दुखों का कारण प्रकृति के साथ पुरुष का भ्रमित तादात्म्य है। जैन धर्म भी इसी विचार को आगे बढ़ाता है, लेकिन वह इसे कर्म और आत्मा की बंधन प्रक्रिया के साथ जोड़ता है। जैन धर्म के अनुसार, कर्म पुद्गल (भौतिक कण) हैं जो आत्मा से चिपक जाते हैं और इसे संसार में बांधे रखते हैं।
हालांकि, जैन धर्म ने सांख्य दर्शन को पूरी तरह से नहीं अपनाया। जैन धर्म का अनेकांतवाद (अपेक्षावाद) और स्यादवाद (संभाव्यता सिद्धांत) सांख्य दर्शन से अलग हैं। अनेकांतवाद के अनुसार, सत्य के कई पहलू होते हैं और कोई भी एक दृष्टिकोण पूर्ण सत्य को व्यक्त नहीं कर सकता। स्यादवाद हर कथन में 'स्याद' (शायद) जोड़कर सत्य की सापेक्षता को दर्शाता है। इसके अतिरिक्त, जैन धर्म आत्मा (जीव) की अवधारणा को सांख्य दर्शन से अधिक विस्तृत रूप से परिभाषित करता है।
संक्षेप में, जैन धर्म ने सांख्य दर्शन से कुछ मूलभूत आध्यात्मिक विचारों को लिया, लेकिन उन्हें अपने स्वयं के विशिष्ट सिद्धांतों और मान्यताओं के अनुसार रूपांतरित और विस्तारित किया। इसलिए, यह कहना उचित होगा कि जैन धर्म सांख्य दर्शन से प्रभावित था, लेकिन उसने एक स्वतंत्र और मौलिक आध्यात्मिक प्रणाली विकसित की।
Answered :- 2022-12-09 16:31:46
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