चन्द्रगुप्त मौर्य के दक्षिण विजय की जानकारी अहनानूरू एवं पुरनानूरू तमिल ग्रंथों से मिलती है, लेकिन यह जानकारी सीधे-सीधे स्पष्ट रूप से नहीं मिलती। इन ग्रंथों में कुछ ऐसे संदर्भ और संकेत मिलते हैं जिनके आधार पर इतिहासकार यह अनुमान लगाते हैं कि चन्द्रगुप्त मौर्य का प्रभाव दक्षिण भारत तक फैला हुआ था।
अहनानूरू (Ahananuru): यह एक संकलन ग्रंथ है जिसमें विभिन्न कवियों द्वारा रचित प्रेम और वीर रस से संबंधित 400 कविताओं का संग्रह है। कुछ विद्वानों का मानना है कि इसमें मौर्य सेना की दक्षिण में उपस्थिति का उल्लेख मिलता है।
पुरनानूरू (Purananuru): यह भी एक संकलन ग्रंथ है जिसमें राजाओं, योद्धाओं और नायकों की वीरता और दानशीलता का वर्णन करने वाली 400 कविताओं का संग्रह है। इसमें भी अप्रत्यक्ष रूप से मौर्य साम्राज्य के दक्षिण में प्रभाव के संकेत मिलते हैं।
इन ग्रंथों के अलावा, जैन और बौद्ध साहित्य भी चन्द्रगुप्त मौर्य के दक्षिण से संबंधों के बारे में कुछ जानकारी प्रदान करते हैं। जैन अनुश्रुतियों के अनुसार, चन्द्रगुप्त मौर्य ने अपने जीवन के अंतिम समय में जैन धर्म स्वीकार कर लिया था और वे अपने पुत्र के पक्ष में सिंहासन त्याग कर कर्नाटक के श्रवणबेलगोला चले गए थे, जहाँ उन्होंने संलेखना विधि से प्राण त्याग दिए।
हालांकि अहनानूरू और पुरनानूरू में मौर्य साम्राज्य के दक्षिण विजय का कोई सीधा उल्लेख नहीं है, लेकिन इन ग्रंथों, जैन अनुश्रुतियों और अन्य पुरातात्विक साक्ष्यों के आधार पर कई इतिहासकार यह मानते हैं कि चन्द्रगुप्त मौर्य का प्रभाव दक्षिण भारत तक फैला हुआ था। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि दक्षिण भारत पर मौर्यों का नियंत्रण सीधे तौर पर स्थापित नहीं था, बल्कि यह प्रभाव और गठबंधन के माध्यम से रहा होगा।
Answered :- 2022-12-09 16:22:04
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