द्वितीय जैन संगीति, जो लगभग 5वीं शताब्दी ईस्वी में वल्लभी (गुजरात) में देवर्धिगणी क्षमाश्रमण की अध्यक्षता में आयोजित की गई थी, जैन धर्म के इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना थी। आपका संक्षिप्त उत्तर सही है, लेकिन इसे और अधिक विस्तार से समझा जा सकता है:
द्वितीय जैन संगीति का प्रमुख कार्य:
धर्म ग्रंथों का संकलन और लिपिबद्ध करना: इस संगीति का सबसे महत्वपूर्ण कार्य जैन धर्म के आगम साहित्य (सिद्धांतों) को अंतिम रूप देना और उन्हें लिपिबद्ध करना था। मौखिक परंपरा से चले आ रहे इन ग्रंथों को व्यवस्थित रूप से लिखा गया, जिससे उन्हें आने वाली पीढ़ियों के लिए सुरक्षित रखा जा सका।
आगमों का वर्गीकरण: संगीति में आगमों को विभिन्न श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया, जैसे कि अंग, उपांग, छेद सूत्र, मूल सूत्र, और प्रकीर्णक। यह वर्गीकरण उन्हें समझने और अध्ययन करने में सहायक हुआ।
विभिन्न सिद्धांतों पर चर्चा: संगीति में जैन धर्म के विभिन्न सिद्धांतों, जैसे कि अनेकांतवाद, स्यादवाद, और कर्म सिद्धांत पर गहन चर्चा हुई। इन चर्चाओं ने सिद्धांतों को स्पष्ट करने और उनमें मौजूद मतभेदों को दूर करने में मदद की।
संघ में अनुशासन बनाए रखना: संगीति का एक उद्देश्य जैन संघ में अनुशासन बनाए रखना भी था। इसमें भिक्षुओं के आचरण और नियमों से संबंधित मुद्दों पर विचार किया गया।
महत्व:
द्वितीय जैन संगीति का जैन धर्म के इतिहास में गहरा महत्व है। इसने आगम साहित्य को सुरक्षित रखने और जैन सिद्धांतों को स्पष्ट करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसके परिणामस्वरूप, जैन धर्म भारत में सदियों तक फला-फूला।
Answered :- 2022-12-09 07:34:23
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