गुप्त वंश के शासक चन्द्रगुप्त द्वितीय, जिन्हें 'विक्रमादित्य' और 'देवगुप्त' के नाम से भी जाना जाता है, का शासनकाल भारतीय इतिहास में स्वर्ण युग माना जाता है। आपका दिया गया समयकाल, 375 ईसवी से 414-415 ईसवी तक, बिलकुल सही है।
हालांकि, कुछ इतिहासकारों के बीच उनकी गद्दी पर बैठने की तिथि को लेकर थोड़ा मतभेद है। कुछ का मानना है कि उन्होंने अपने पिता समुद्रगुप्त के बाद 380 ईसवी के आसपास शासन संभाला था। बावजूद इसके, यह व्यापक रूप से स्वीकार किया जाता है कि उन्होंने लगभग 39 वर्षों तक शासन किया।
चन्द्रगुप्त द्वितीय का शासनकाल राजनीतिक स्थिरता, कला, साहित्य, और विज्ञान में उल्लेखनीय प्रगति का साक्षी रहा। उन्होंने पश्चिमी भारत के शक क्षत्रपों को पराजित कर गुप्त साम्राज्य का विस्तार किया, जिससे व्यापार और वाणिज्य को बढ़ावा मिला। उनकी विजय के परिणामस्वरूप, गुप्त साम्राज्य अरब सागर तक पहुँच गया, जिससे रोम और अन्य पश्चिमी देशों के साथ समुद्री व्यापार में वृद्धि हुई।
उनके दरबार में नवरत्न नामक विद्वानों की एक सभा थी, जिनमें कालिदास जैसे महान कवि और नाटककार शामिल थे। फाहियान नामक एक चीनी बौद्ध भिक्षु ने उनके शासनकाल में भारत की यात्रा की और अपने यात्रा वृत्तांत में गुप्त साम्राज्य की समृद्धि और शांति का वर्णन किया।
चन्द्रगुप्त द्वितीय ने 'विक्रमादित्य' की उपाधि धारण की, जो भारतीय इतिहास में एक आदर्श शासक का प्रतीक बन गया। उनके द्वारा जारी किए गए सोने और चांदी के सिक्के कलात्मक उत्कृष्टता के उत्कृष्ट उदाहरण हैं और उनके शासनकाल की समृद्धि को दर्शाते हैं।
संक्षेप में, चन्द्रगुप्त द्वितीय का शासनकाल गुप्त वंश के चरम का प्रतिनिधित्व करता है, जिसमें राजनीतिक विजय, आर्थिक समृद्धि, और सांस्कृतिक विकास का अद्भुत संगम देखने को मिलता है।
Answered :- 2022-12-09 15:35:15
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