जैन साहित्य में 12 उपांग हैं। ये आगम साहित्य का हिस्सा हैं, जो जैन धर्म के सिद्धांतों और आचरणों पर विस्तृत जानकारी प्रदान करते हैं। उपांगों को आगमों के सहायक या पूरक के रूप में देखा जाता है, और वे आगमों में प्रस्तुत विषयों को और अधिक गहराई से समझने में मदद करते हैं। 12 उपांग इस प्रकार हैं: 1. उववाई (उपपात): इसमें देवताओं और नारकियों की उत्पत्ति और उनके लोकों का वर्णन है। यह कर्म सिद्धांत और पुनर्जन्म के बारे में जानकारी प्रदान करता है। 2. रायपसेणिय (राजप्रश्नीय): यह केशी श्रमण और राजा प्रदेसी के बीच संवाद है। यह आत्मा, पुनर्जन्म और मोक्ष के मार्ग पर प्रकाश डालता है। 3. जीवाभिगम: यह जीवों के वर्गीकरण, उनके गुणों और उनकी गति (एक जीवन से दूसरे में संक्रमण) का वर्णन करता है। 4. पन्नवणा (प्रज्ञापना): इसमें विभिन्न प्रकार के पदार्थों और उनके गुणों का विस्तृत विवरण है। यह जैन तत्वमीमांसा का महत्वपूर्ण हिस्सा है। 5. सूरियपन्नति (सूर्यप्रज्ञप्ति): यह खगोलीय पिंडों, विशेष रूप से सूर्य की गति और स्थिति का वर्णन करता है। 6. जंबूद्वीपपन्नति: यह जंबूद्वीप की भौगोलिक संरचना और उसकी विशेषताओं का वर्णन करता है। 7. चंदपन्नति (चंद्रप्रज्ञप्ति): यह चंद्रमा और अन्य ग्रहों की गति और स्थिति का वर्णन करता है। 8. निरयावलियाओ (निरयावलिका): इसमें विभिन्न नारकीय जीवों की पीड़ा और यातनाओं का वर्णन है। 9. कप्पियाओ (कल्पिका): इसमें जैन भिक्षुओं के आचरण और नियमों का वर्णन है। 10. पुफ्फियाओ (पुष्पिका): इसमें विभिन्न प्रकार के फूलों और पौधों का वर्णन है, जो जैन कला और संस्कृति में महत्वपूर्ण हैं। 11. पुफ्फचूलियाओ (पुष्पचूलिका): यह पुष्पिका का विस्तार है, जिसमें और अधिक फूलों और पौधों का वर्णन है। 12. वन्निदसाओ (वृष्णिदशा): इसमें वृष्णि वंश के दस राजाओं की कहानियाँ हैं, जिन्होंने जैन धर्म का पालन किया। ये उपांग जैन दर्शन, खगोल विज्ञान, भूगोल, जीव विज्ञान और नैतिकता जैसे विषयों को कवर करते हैं। वे जैन धर्म के अनुयायियों के लिए महत्वपूर्ण ग्रंथ हैं, क्योंकि वे जैन धर्म के सिद्धांतों और आचरणों को समझने में मदद करते हैं। इन ग्रंथों के अध्ययन से जैन धर्म के समग्र ज्ञान को प्राप्त किया जा सकता है।

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