जैन धर्म में सिद्धों को पाँच श्रेणियों में विभाजित किया गया है, जिन्हें 'पंच परमेष्ठी' के नाम से जाना जाता है। ये पाँचों जैन धर्म के सर्वोच्च आदर्श और पूजनीय व्यक्तित्व हैं। इन श्रेणियों में शामिल हैं:
1. अरहंत (Arhat): ये वे जीव हैं जिन्होंने अपनी आत्मा से सभी कर्मों को नष्ट कर दिया है, लेकिन अभी भी शरीर में विद्यमान हैं। वे केवलज्ञान (पूर्ण ज्ञान) प्राप्त कर चुके होते हैं और दूसरों को मोक्ष का मार्ग दिखाते हैं। वे उपदेश देते हैं और जैन धर्म के सिद्धांतों का प्रसार करते हैं।
2. सिद्ध (Siddha): ये वे जीव हैं जिन्होंने अपने शरीर का त्याग कर दिया है और पूरी तरह से कर्मों से मुक्त हो गए हैं। वे अनंत सुख और शाश्वत मुक्ति की स्थिति में विराजमान होते हैं। सिद्ध संसारिक बंधनों से परे हैं और पुनर्जन्म के चक्र से मुक्त हो जाते हैं।
3. आचार्य (Acharya): ये वे धार्मिक नेता हैं जो जैन समुदाय का नेतृत्व करते हैं। वे साधुओं और श्रावकों को धार्मिक मार्गदर्शन देते हैं, जैन शास्त्रों का अध्ययन और अध्यापन कराते हैं, और धर्म के नियमों का पालन सुनिश्चित करते हैं।
4. उपाध्याय (Upadhyaya): ये वे साधु हैं जो अन्य साधुओं को जैन शास्त्रों का अध्ययन कराते हैं। वे धार्मिक शिक्षा और ज्ञान के प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
5. साधु (Sadhu): ये वे भिक्षु हैं जिन्होंने सांसारिक जीवन का त्याग कर दिया है और मोक्ष की प्राप्ति के लिए कठोर तपस्या और साधना करते हैं। वे अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह के पाँच व्रतों का पालन करते हैं।
इन पाँचों श्रेणियों के सिद्धों को जैन धर्म में अत्यधिक सम्मान दिया जाता है और उन्हें मोक्ष के मार्ग पर चलने वाले प्रत्येक व्यक्ति के लिए आदर्श माना जाता है। जैन धर्म में इन पंच परमेष्ठियों की आराधना करना महत्वपूर्ण माना जाता है, क्योंकि यह आत्मा को शुद्ध करने और मोक्ष की ओर ले जाने में सहायक होता है।
Answered :- 2022-12-09 07:34:23
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