जैन साहित्य में 6 छेदसूत्र हैं। ये छेदसूत्र जैन भिक्षुओं और भिक्षुणियों के आचरण नियमों से संबंधित हैं। इन्हें 'छेदसूत्र' इसलिए कहा जाता है क्योंकि ये नियमों के उल्लंघन (छेद) और उनके प्रायश्चित्त से संबंधित हैं। ये सूत्र जैन धर्म में मुनियों के लिए एक आचार संहिता के रूप में महत्वपूर्ण हैं। यहां उन 6 छेदसूत्रों के नाम दिए गए हैं: 1. निशीथ सूत्र (Nishitha Sutra): यह सूत्र मुनियों द्वारा किए गए विभिन्न अपराधों और उनके प्रायश्चित्तों का विस्तृत वर्णन करता है। इसमें ब्रह्मचर्य के भंग, चोरी, झूठ, और अन्य अपराधों के लिए अलग-अलग प्रायश्चित्त बताए गए हैं। 2. महानिशीथ सूत्र (Maha-Nishitha Sutra): यह निशीथ सूत्र का परिशिष्ट माना जाता है और इसमें अधिक गंभीर अपराधों और उनके प्रायश्चित्तों का वर्णन है। 3. व्यवहार सूत्र (Vyavahara Sutra): यह सूत्र मुनियों के दैनिक जीवन और उनके व्यवहार से संबंधित नियमों का विवरण देता है। इसमें आहार, वस्त्र, निवास, और अन्य आवश्यकताओं के बारे में मार्गदर्शन दिया गया है। 4. आचारदशा सूत्र (Achardasha Sutra): यह सूत्र दस अध्यायों में विभाजित है और इसमें मुनियों के आचरण के दस पहलुओं पर प्रकाश डाला गया है। यह सूत्र मुनियों के लिए एक आदर्श आचार संहिता प्रस्तुत करता है। 5. कल्प सूत्र (Kalpa Sutra): यह सूत्र जैन तीर्थंकरों के जीवन चरित्रों और जैन साधुओं के नियमों का वर्णन करता है। इसमें विशेष रूप से महावीर स्वामी के जीवन और उपदेशों का वर्णन है। 6. पंचकल्प सूत्र (Pancha-Kalpa Sutra): यह कल्प सूत्र का परिशिष्ट माना जाता है और इसमें कुछ अतिरिक्त नियमों और उपदेशों का वर्णन है। ये छह छेदसूत्र जैन धर्म के दिगंबर और श्वेतांबर दोनों समुदायों के लिए महत्वपूर्ण हैं, हालांकि उनके बीच कुछ मामलों में व्याख्याओं में भिन्नता हो सकती है। इन सूत्रों का अध्ययन और पालन जैन भिक्षुओं और भिक्षुणियों के लिए आत्म-अनुशासन और आध्यात्मिक विकास का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।

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