जैन साहित्य में 12 अंग हैं, यह सही है। लेकिन, इस उत्तर को और अधिक विस्तृत किया जा सकता है। जैन साहित्य, जिसे आगम साहित्य भी कहा जाता है, मुख्य रूप से दो भागों में विभाजित है: श्वेतांबर आगम और दिगंबर आगम। जहाँ दिगंबर आगम को धीरे-धीरे लुप्त माना जाता है, वहीं श्वेतांबर आगम को मान्यता प्राप्त है। श्वेतांबर आगम साहित्य में 45 ग्रंथ शामिल हैं, जिन्हें विभिन्न श्रेणियों में बांटा गया है। इनमें सबसे महत्वपूर्ण 12 अंग हैं। ये अंग जैन धर्म के मूल सिद्धांतों, आचार-विचार, दर्शन, और कथाओं का संग्रह हैं। 12 अंग इस प्रकार हैं: 1. आचारांग: साधुओं के आचरण और नियमों से संबंधित। 2. सूत्रकृतांग: अन्य दार्शनिक मतों और उनसे जुड़े विवादों का वर्णन। 3. स्थानांग: संख्याओं के आधार पर विषयों का वर्गीकरण। 4. समवायांग: विषयों को समूहों में व्यवस्थित करना। 5. व्याख्याप्रज्ञाप्ति (भगवती): प्रश्नोत्तरी शैली में विषयों की विस्तृत व्याख्या। 6. ज्ञातृधर्मकथा: दृष्टांतों और कहानियों के माध्यम से धर्म का निरूपण। 7. उपासकाध्ययन: गृहस्थों (उपासकों) के कर्तव्यों और आचरणों का वर्णन। 8. अंतकृद्दशा: निर्वाण प्राप्त करने वाले दस संतों की कथाएँ। 9. अनुत्तरोपपादिकदशा: कर्मों का नाश करके उच्च पद प्राप्त करने वाले दस संतों की कथाएँ। 10. प्रश्नव्याकरण: प्रश्नों और उनके उत्तरों के माध्यम से धर्म की व्याख्या। 11. विपाकसूत्र: कर्मों के फल (विपाक) का वर्णन, अच्छे और बुरे कर्मों के परिणाम। 12. दृष्टिवाद: (वर्तमान में अनुपलब्ध) जैन दर्शन का सबसे महत्वपूर्ण अंग माना जाता था, जिसमें सभी विषयों का सार था। इन 12 अंगों के अतिरिक्त, अन्य महत्वपूर्ण आगम ग्रंथ हैं: 12 उपांग, 6 छेदसूत्र, 4 मूलसूत्र, और 2 स्वतंत्र सूत्र। दृष्टिवाद अंग अब उपलब्ध नहीं है, जिससे जैन विद्वानों में इसकी सामग्री और महत्व को लेकर कई अटकलें हैं। श्वेतांबर परंपरा के अनुसार, शेष 11 अंगों को महावीर स्वामी के उपदेशों का संकलन माना जाता है, जिसे उनके शिष्यों द्वारा मौखिक रूप से संरक्षित किया गया और बाद में लिपिबद्ध किया गया। इस प्रकार, 12 अंग जैन साहित्य का मूल आधार हैं और जैन धर्म के अध्ययन के लिए महत्वपूर्ण स्रोत हैं।

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