जैन साहित्य में 10 प्रकीर्णकों की गणना की जाती है। प्रकीर्णक, आगम साहित्य का एक महत्वपूर्ण अंग हैं, जो जैन धर्म के सिद्धांतों और आचरणों पर प्रकाश डालते हैं। इन्हें आगमों के परिशिष्ट के रूप में भी माना जाता है।
यहाँ इन 10 प्रकीर्णकों के नाम और उनमें निहित विषयों का संक्षिप्त विवरण दिया गया है:
1. चउसरण (चतुःशरण): यह प्रकीर्णक चार शरणों - अरिहंत, सिद्ध, साधु और धर्म - में शरण लेने के महत्व पर जोर देता है। यह बताता है कि कैसे ये चार शरण सांसारिक दुखों से मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करते हैं।
2. आउरिया-पच्चक्खाण (आतुर प्रत्याख्यान): यह मृत्यु शैया पर लेटे व्यक्ति द्वारा किए जाने वाले त्यागों (प्रत्याख्यानों) का वर्णन करता है। यह दर्शाता है कि कैसे अंतिम समय में सांसारिक आसक्तियों को त्याग कर आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त की जा सकती है।
3. भत्तपरिन्ना (भक्तपरिज्ञा): यह प्रकीर्णक उपवास और भोजन के त्याग (अंशन) के विभिन्न रूपों का वर्णन करता है। यह बताता है कि कैसे आत्म-नियंत्रण और तपस्या के माध्यम से कर्मों को नष्ट किया जा सकता है।
4. सल्लेखणा (संलेखना): यह धीरे-धीरे भोजन और पानी का त्याग करके मृत्यु को गले लगाने की जैन विधि का वर्णन करता है। यह प्रकीर्णक संलेखना के नियमों और लाभों पर प्रकाश डालता है, जो आध्यात्मिक जागृति की ओर ले जाता है।
5. तरुण-तारुण (तरुण-तारुण): इस प्रकीर्णक में युवा भिक्षुओं के आचरण और शिक्षाओं का वर्णन है। यह युवा साधकों के लिए मार्गदर्शन प्रदान करता है।
6. वीरिय-अनुप्पिया (वीर्य-अनुप्रेक्षा): यह आध्यात्मिक शक्ति (वीर्य) के महत्व पर जोर देता है और बताता है कि कैसे इसका उपयोग आत्म-अनुशासन और ध्यान के माध्यम से ज्ञान प्राप्त करने के लिए किया जा सकता है।
7. पंडित-मरण (पंडित-मरण): यह ज्ञानियों (पंडितों) की मृत्यु के तरीकों और उनके द्वारा प्राप्त की गई आध्यात्मिक उपलब्धियों का वर्णन करता है।
8. गणिविच्छेय (गणिविच्छेद): यह उन स्थितियों का वर्णन करता है जिनमें एक संघ (गण) टूट सकता है या विभाजित हो सकता है, और ऐसी स्थितियों से कैसे बचा जाए। यह संघ की एकता और सद्भाव के महत्व पर जोर देता है।
9. देवेंद-थुअ (देवेंद्र-स्तव): इसमें विभिन्न देवताओं (देवों) की स्तुतियां हैं और उन्हें कैसे प्रसन्न किया जाए, इसका वर्णन है। हालांकि जैन धर्म में देवताओं को सर्वोच्च नहीं माना जाता, लेकिन उन्हें सम्मान दिया जाता है और उनकी स्तुति करने से सकारात्मक फल प्राप्त होते हैं।
10. महा-पच्चक्खाण (महा-प्रत्याख्यान): यह बड़े त्यागों (महा-प्रत्याख्यानों) का वर्णन करता है, जो एक साधक अपने जीवन में करता है। यह सांसारिक सुखों के त्याग और आध्यात्मिक प्रगति के लिए प्रतिबद्धता का प्रतीक है।
इन प्रकीर्णकों का अध्ययन जैन दर्शन और आचरण को समझने के लिए महत्वपूर्ण है। ये जैन साहित्य को समृद्ध करते हैं और जैन धर्म के अनुयायियों को आध्यात्मिक मार्गदर्शन प्रदान करते हैं।
Answered :- 2022-12-09 07:34:23
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