जैन धर्म के अनुसार, ज्ञान के तीन नहीं, बल्कि पाँच मुख्य स्रोत हैं, जिन्हें "ज्ञान के पंच प्रकार" भी कहा जाता है। ये ज्ञान प्राप्ति के पाँच विभिन्न तरीके हैं जिनसे आत्मा सत्य को जान सकती है: 1. मति (Mati): यह इन्द्रियों और मन के माध्यम से प्राप्त होने वाला ज्ञान है। इसमें देखना, सुनना, सूंघना, चखना और स्पर्श करना शामिल है, साथ ही मन द्वारा इन्द्रियों से प्राप्त सूचना का प्रसंस्करण भी शामिल है। यह ज्ञान का सबसे बुनियादी रूप है और सांसारिक मामलों को समझने के लिए आवश्यक है। 2. श्रुत (Shrut): यह सुनकर, पढ़कर या सीखकर प्राप्त होने वाला ज्ञान है। यह मति ज्ञान पर आधारित होता है और गुरुओं, शास्त्रों या अन्य विश्वसनीय स्रोतों से प्राप्त होता है। यह ज्ञान हमें पूर्वजों के अनुभवों और ज्ञान से जोड़ता है। 3. अवधि (Avadhi): यह दिव्य ज्ञान है जो समय, स्थान और पदार्थ की सीमाओं को पार कर जाता है। यह ज्ञान स्वाभाविक रूप से प्रकट होता है और इसे विशेष साधना या तपस्या के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है। अवधि ज्ञान सीमित अवधि के लिए होता है और सभी को प्राप्त नहीं होता। 4. मनःपर्यय (Manahparyaya): यह दूसरों के मन और विचारों को जानने की क्षमता है। यह विशेष रूप से उन्नत आध्यात्मिक साधकों को प्राप्त होता है और इसका उपयोग दूसरों की मदद करने और उन्हें सही मार्ग पर ले जाने के लिए किया जाता है। 5. केवल (Keval): यह पूर्ण और सर्वोच्च ज्ञान है। यह सभी बंधनों से मुक्त होने पर प्राप्त होता है और आत्मा को सभी चीजों की वास्तविक प्रकृति का प्रत्यक्ष और तात्कालिक अनुभव प्रदान करता है। केवल ज्ञान प्राप्त करने वाला व्यक्ति 'केवली' कहलाता है। संक्षेप में, जैन धर्म ज्ञान प्राप्ति के विभिन्न स्तरों और माध्यमों को मान्यता देता है, जिनमें इंद्रिय अनुभव से लेकर दिव्य अंतर्दृष्टि तक शामिल हैं। इन सभी ज्ञानों का अंतिम लक्ष्य आत्मा को मुक्ति की ओर ले जाना है।

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