जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ थे, न कि सातवें। पार्श्वनाथ का प्रतीक चिन्ह सर्प (सांप) है। पार्श्वनाथ, इक्ष्वाकु वंश के राजा अश्वसेन के पुत्र थे। उन्होंने 30 वर्ष की आयु में गृह त्याग कर संन्यास धारण किया। उन्होंने 83 दिनों की कठोर तपस्या के बाद कैवल्य (ज्ञान) प्राप्त किया। जैन धर्म में उन्हें महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है और उन्हें अहिंसा, सत्य, अस्तेय (चोरी न करना), अपरिग्रह (संग्रह न करना) और ब्रह्मचर्य के सिद्धांतों का प्रचारक माना जाता है। पार्श्वनाथ के अनुयायियों को 'निर्ग्रन्थ' कहा जाता था।

New Questions