इटली के मुसोलिनी ने रोम पर अक्टूबर 1922 में आक्रमण किया था, जिसे "रोम पर मार्च" के नाम से जाना जाता है। यह घटना बेनिटो मुसोलिनी और उसकी नेशनल फासिस्ट पार्टी द्वारा सत्ता हथियाने का एक महत्वपूर्ण क्षण था। हालांकि इसे "आक्रमण" कहा जाता है, लेकिन यह एक सशस्त्र संघर्ष नहीं था। बल्कि, यह लगभग 30,000 फासीवादी समर्थकों का एक संगठित जुलूस था, जो पूरे इटली से रोम की ओर बढ़े थे। इसका उद्देश्य सरकार पर दबाव डालना और मुसोलिनी को सत्ता सौंपना था। तत्कालीन प्रधानमंत्री लुइगी फैक्टा ने राजा विक्टर इमैनुएल तृतीय से मार्शल लॉ घोषित करने और फासीवादियों को रोकने की अनुमति मांगी थी। हालांकि, राजा ने इनकार कर दिया, संभवतः गृहयुद्ध के डर से या फासीवादियों के साथ सहानुभूति के कारण। राजा के समर्थन के बिना, फैक्टा ने इस्तीफा दे दिया, और राजा विक्टर इमैनुएल तृतीय ने मुसोलिनी को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया। इस प्रकार, "रोम पर मार्च" बिना किसी वास्तविक लड़ाई के मुसोलिनी को सत्ता में लाने में सफल रहा। इस घटना ने इटली में फासीवादी शासन की शुरुआत को चिह्नित किया, जो द्वितीय विश्व युद्ध तक चला। "रोम पर मार्च" फासीवादी प्रचार में एक महत्वपूर्ण प्रतीक बन गया, जिसे फासीवादी शक्ति और संकल्प के प्रदर्शन के रूप में चित्रित किया गया।

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