नासिक षड्यंत्र केस 1909 में हुआ था। यह भारत के स्वतंत्रता आंदोलन से संबंधित एक महत्वपूर्ण केस था।
इस केस में, ब्रिटिश सरकार ने एक समूह के ऊपर गड़ी गंभीर आरोप लगाए थे कि वे भारत के विद्रोह की योजना बना रहे हैं। इस समूह में नासिक जिले के नेता विनायक डामोदर सावरकर भी शामिल थे। इसे सावरकर समूह के नेता माना जाता था।
इस केस में सावरकर के समूह के 41 सदस्य गिरफ्तार किए गए थे। बाद में ब्रिटिश सरकार ने इनमें से कुछ सदस्यों को छोड़ दिया था, लेकिन सावरकर को गिरफ्तार किए जाने के बाद विवाद उठा था। सावरकर के समर्थक इस गिरफ्तारी को गलत बताते थे और उनका मानना था कि सावरकर ने विद्रोह की योजना नहीं बनाई थी।
इस केस का नतीजा था कि सावरकर को दो बार जेल भेजा गया था। उन्होंने अपनी निर्दोषता का सबूत देने के लिए एक किताब भी लिखी थी, जिसका नाम समर सभा था।
दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति नेलसन मंडेला को यह मामला बहुत ही मुश्किल बना दिया था। उन्होंने अपनी बचाव करने के लिए एक बड़ी अभियान शुरू किया था। वे इस मुद्दे के समाधान के लिए अंततः स्वतंत्रता से पहले ही एक समझौता कराने में सफल हुए थे।
नासिक षड्यंत्र केस एक ऐसा मामला था जिसने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान ब्रिटिश सरकार के सामने एक महत्वपूर्ण परीक्षा का मुकाबला किया था। इस मामले में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की नयी एक चेतना का जन्म हुआ था जो अंततः भारत के स्वतंत्रता की उत्पत्ति में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।