चन्द्रगुप्त द्वितीय के पदाधिकारी महाप्रतिहार 'मुख्य दौवारिक' कहलाता था, जिसका अर्थ 'मुख्य द्वारपाल' या 'प्रवेश द्वार का प्रमुख' होता था। यह पद गुप्त साम्राज्य में बहुत महत्वपूर्ण माना जाता था, क्योंकि महाप्रतिहार न केवल राजमहल और दरबार की सुरक्षा का प्रभारी होता था, बल्कि दरबार में प्रवेश करने वाले लोगों को भी नियंत्रित करता था। कार्य: महाप्रतिहार का मुख्य कार्य राजमहल की सुरक्षा सुनिश्चित करना, दरबार में आने वाले आगंतुकों की जांच करना, और यह सुनिश्चित करना था कि कोई भी अवांछित व्यक्ति दरबार में प्रवेश न करे। वह दरबार में अनुशासन बनाए रखने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता था। महत्व: महाप्रतिहार का पद राजा के प्रति निष्ठा और विश्वास का प्रतीक था। इस पद पर नियुक्त व्यक्ति राजा का विश्वासपात्र होता था और उसे साम्राज्य के महत्वपूर्ण रहस्यों की जानकारी होती थी। अन्य नाम: कुछ स्रोतों में, महाप्रतिहार को 'द्वारपाल' या 'प्रतिहार' के नाम से भी जाना जाता है। संदर्भ: गुप्त काल में महाप्रतिहार जैसे महत्वपूर्ण पदों की मौजूदगी से यह पता चलता है कि उस समय प्रशासन कितना सुव्यवस्थित और संगठित था। ये पदाधिकारी साम्राज्य की स्थिरता और सुरक्षा में महत्वपूर्ण योगदान देते थे। संक्षेप में, महाप्रतिहार सिर्फ एक द्वारपाल नहीं था, बल्कि वह एक महत्वपूर्ण अधिकारी था जो गुप्त साम्राज्य की सुरक्षा, व्यवस्था और राजा के प्रति निष्ठा का प्रतीक था।

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