जो निर्वाण प्राप्ति की ओर अग्रसर हो, वह जैन सिद्धों की अर्हत श्रेणी में आता है।
जैन धर्म में, सिद्धों को दो मुख्य श्रेणियों में बांटा गया है:
1. अर्हत (Arhat): ये वे सिद्ध होते हैं जिन्होंने अपनी साधना और तपस्या के माध्यम से कर्मों का क्षय करना शुरू कर दिया है और मोक्ष की ओर अग्रसर हैं। वे अभी भी संसार में मौजूद हैं और दूसरों को ज्ञान और मार्गदर्शन प्रदान करते हैं। अर्हतों में तीर्थंकर भी शामिल हैं, जो धर्म के उपदेशक होते हैं।
2. सिद्ध (Siddha): ये वे सिद्ध होते हैं जिन्होंने सभी कर्मों का पूर्ण क्षय कर दिया है और मोक्ष प्राप्त कर लिया है। वे संसार के बंधनों से पूरी तरह मुक्त हो चुके हैं और अनंत सुख और ज्ञान की स्थिति में हैं।
अर्हत श्रेणी जैन धर्म में बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह उन व्यक्तियों का प्रतिनिधित्व करती है जो मोक्ष के मार्ग पर चल रहे हैं और दूसरों के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं। वे अभी भी संसार में रहकर अपने ज्ञान और अनुभव से दूसरों की मदद कर सकते हैं, जिससे अधिक लोग मोक्ष के मार्ग पर अग्रसर हो सकें।
इसलिए, "अर्हत" शब्द उन जैन सिद्धों को दर्शाता है जो निर्वाण प्राप्ति की दिशा में सक्रिय रूप से प्रयास कर रहे हैं और अभी भी इस संसार में विद्यमान हैं।
Answered :- 2022-12-11 18:15:29
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