चंद्रगुप्त द्वितीय, जिन्हें विक्रमादित्य के नाम से भी जाना जाता है, गुप्त वंश के एक शक्तिशाली शासक थे। आपके द्वारा बताए गए नामों, देवगुप्त, देवराज और देवश्री, के अतिरिक्त, उन्हें 'विक्रमांक' और 'परम भागवत' जैसे नामों से भी जाना जाता था। 'विक्रमांक' नाम उनके वीरतापूर्ण अभियानों और विजयों को दर्शाता है, जबकि 'परम भागवत' विष्णु के प्रति उनकी गहरी भक्ति को इंगित करता है। चंद्रगुप्त द्वितीय ने गुप्त साम्राज्य को अपने चरम पर पहुंचाया। उन्होंने पश्चिम भारत में शक क्षत्रपों को पराजित कर गुप्त साम्राज्य का विस्तार किया और उज्जयिनी को अपनी दूसरी राजधानी बनाया। उनके शासनकाल को भारतीय इतिहास का स्वर्ण युग माना जाता है, क्योंकि इस दौरान कला, साहित्य, विज्ञान और प्रौद्योगिकी का अभूतपूर्व विकास हुआ। कालिदास जैसे महान कवि और विद्वान उनके दरबार की शोभा बढ़ाते थे। फाह्यान नामक चीनी बौद्ध भिक्षु ने उनके शासनकाल में भारत की यात्रा की और अपने वृत्तांत में गुप्त साम्राज्य की समृद्धि और कुशल प्रशासन का उल्लेख किया है।

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