अकबर द्वारा तीर्थ यात्रा कर की समाप्ति 1563 ईसवी में की गई थी। इस निर्णय के पीछे कई महत्वपूर्ण कारण थे, जो अकबर की दूरदर्शिता और समावेशी नीतियों को दर्शाते हैं। सबसे पहले, यह कर गैर-मुस्लिमों पर लगाया जाता था जो अपने धार्मिक स्थलों की यात्रा करते थे। अकबर ने महसूस किया कि यह कर धार्मिक भेदभाव को बढ़ावा देता है और साम्राज्य में गैर-मुस्लिमों के बीच असंतोष पैदा करता है। दूसरा, अकबर ने धार्मिक सहिष्णुता की नीति अपनाई थी, जिसे 'सुलह-ए-कुल' कहा जाता है। इसका अर्थ था सभी धर्मों के प्रति सद्भाव और समानता का भाव रखना। तीर्थ यात्रा कर को समाप्त करके, अकबर ने इस नीति को मजबूत किया और अपने साम्राज्य में धार्मिक सद्भाव को बढ़ावा दिया। तीसरा, अकबर का मानना था कि प्रजा की भलाई ही एक शासक का सबसे महत्वपूर्ण कर्तव्य है। तीर्थ यात्रा कर को समाप्त करने से गरीब और वंचित लोगों को राहत मिली, जो अक्सर इस कर का बोझ उठाने में असमर्थ थे। इस निर्णय का साम्राज्य पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा। गैर-मुस्लिमों ने अकबर के प्रति अपनी निष्ठा और सम्मान व्यक्त किया, जिससे साम्राज्य में एकता और स्थिरता आई। यह कदम अकबर की धार्मिक सहिष्णुता और न्यायप्रियता की मिसाल बना, जिसने उन्हें भारतीय इतिहास के महान शासकों में से एक के रूप में स्थापित किया।

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