चन्द्रगुप्त मौर्य का शासनकाल 322-321 ईसा पूर्व से 298 ईसा पूर्व तक था। चन्द्रगुप्त मौर्य, मौर्य साम्राज्य के संस्थापक थे, जो भारतीय इतिहास के सबसे बड़े साम्राज्यों में से एक था। उन्होंने नंद वंश को उखाड़ फेंका और एक विशाल साम्राज्य की स्थापना की, जिसमें वर्तमान भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के कुछ हिस्से शामिल थे। चाणक्य का मार्गदर्शन: चन्द्रगुप्त मौर्य को उनके गुरु चाणक्य (कौटिल्य) का मार्गदर्शन मिला था, जो एक कुशल राजनीतिज्ञ और अर्थशास्त्री थे। चाणक्य ने "अर्थशास्त्र" नामक ग्रंथ लिखा, जो शासन कला और राजनीति पर एक महत्वपूर्ण ग्रंथ माना जाता है। साम्राज्य विस्तार: चन्द्रगुप्त ने उत्तर-पश्चिमी भारत में यूनानी शासकों के साथ युद्ध किया और उन्हें पराजित किया, जिससे उनके साम्राज्य का विस्तार हुआ। उन्होंने सेल्यूकस निकेटर को भी हराया, जो सिकंदर महान के सेनापतियों में से एक था। प्रशासन: चन्द्रगुप्त ने एक सुव्यवस्थित प्रशासन प्रणाली स्थापित की, जिसमें केंद्रीयकृत सरकार, प्रांतीय प्रशासन और स्थानीय स्वशासन शामिल थे। उन्होंने अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए कृषि, व्यापार और वाणिज्य को बढ़ावा दिया। जैन धर्म: अपने जीवन के अंतिम वर्षों में, चन्द्रगुप्त मौर्य ने जैन धर्म अपना लिया और सिंहासन त्याग दिया। वे श्रवणबेलगोला (कर्नाटक) चले गए और संथारा (उपवास द्वारा मृत्यु) का अभ्यास करते हुए प्राण त्याग दिए। चन्द्रगुप्त मौर्य का शासनकाल भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण युग माना जाता है। उन्होंने एक विशाल साम्राज्य की स्थापना की, एक सुव्यवस्थित प्रशासन प्रणाली विकसित की और भारत को राजनीतिक रूप से एकजुट किया।

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