द्वितीय जैन संगीति 512 ईसवी में वल्लभी (गुजरात) में हुई थी। यह श्वेतांबर जैन समुदाय की एक महत्वपूर्ण सभा थी, जिसकी अध्यक्षता देवर्धिगणी क्षमाश्रमण ने की थी। इस संगीति का मुख्य उद्देश्य जैन धर्मग्रंथों को व्यवस्थित रूप से लिपिबद्ध करना था। वर्षों से मौखिक परंपरा के कारण आगम साहित्य में कई भिन्नताएं आ गई थीं, जिससे सिद्धांतों में भ्रम की स्थिति उत्पन्न हो रही थी। इस संगीति में, 11 अंगों और 12 उपांगों सहित आगम साहित्य को अंतिम रूप दिया गया और ताड़पत्रों पर लिखा गया। इस संगीति का जैन धर्म के इतिहास में बहुत महत्व है क्योंकि इसने आगम साहित्य को सुरक्षित रखने और सिद्धांतों को मानकीकृत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसने श्वेतांबर जैन धर्म की नींव को मजबूत किया और आने वाली पीढ़ियों के लिए ज्ञान का एक अमूल्य स्रोत प्रदान किया। संगीति के परिणामस्वरूप लिपिबद्ध आगम साहित्य आज भी श्वेतांबर जैन समुदाय के लिए प्रामाणिक माना जाता है।

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