अकबर ने अमीर फतहउल्ला शिराज़ी की गणना पर आधारित इलाही संवत प्रचलित किया था। यह संवत 1584 ईस्वी में शुरू हुआ और इसे हिजरी संवत के स्थान पर लागू करने का प्रयास किया गया था। इसका उद्देश्य एक ऐसा धर्मनिरपेक्ष कैलेंडर बनाना था जो सभी धर्मों के लोगों के लिए समान हो। हाँ, बैरम खाँ के बाद वजीर के पद को समाप्त कर दिया गया था, लेकिन बाद में इसे पुनर्जीवित किया गया। अकबर ने शुरुआत में वजीर के पद को इसलिए समाप्त किया क्योंकि वह प्रशासन पर अपना सीधा नियंत्रण स्थापित करना चाहता था। हालांकि, बाद में उन्हें एहसास हुआ कि एक सक्षम वजीर की आवश्यकता है, और उन्होंने इस पद को फिर से बहाल कर दिया। इस पद पर नियुक्त कुछ महत्वपूर्ण व्यक्तियों में राजा टोडरमल और मुजफ्फर खान तुरबती शामिल थे। अतिरिक्त जानकारी: अमीर फतहउल्ला शिराज़ी: वे एक प्रसिद्ध वैज्ञानिक, गणितज्ञ और खगोलशास्त्री थे जिन्हें अकबर ने अपने दरबार में आमंत्रित किया था। उन्होंने सिंचाई प्रणाली को बेहतर बनाने और कई तकनीकी नवाचारों में महत्वपूर्ण योगदान दिया। इलाही संवत: यह संवत अकबर के शासनकाल के 29वें वर्ष में शुरू हुआ। इसे सौर कैलेंडर के आधार पर बनाया गया था और इसमें महीनों के फारसी नाम इस्तेमाल किए गए थे। यह संवत व्यापक रूप से लोकप्रिय नहीं हो सका और हिजरी संवत का प्रचलन जारी रहा। वजीर का पद: मुगल साम्राज्य में वजीर प्रधानमंत्री के समकक्ष होता था और साम्राज्य के वित्तीय और प्रशासनिक मामलों का प्रमुख होता था। बैरम खाँ के पतन के बाद, अकबर ने इस पद के महत्व को कम करने का प्रयास किया, लेकिन बाद में इसे फिर से स्थापित करना पड़ा। राजा टोडरमल: वे अकबर के दरबार में एक कुशल वित्त मंत्री थे और उन्होंने भूमि राजस्व प्रणाली में कई महत्वपूर्ण सुधार किए, जिन्हें "ज़ब्ती प्रणाली" के नाम से जाना जाता है। मुजफ्फर खान तुरबती: वे भी अकबर के शासनकाल में एक महत्वपूर्ण वजीर थे और उन्होंने साम्राज्य के प्रशासन में महत्वपूर्ण योगदान दिया।

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