जैन धर्म के तीसरे तीर्थंकर सम्भवनाथ थे, और उनका जन्म श्रावस्ती में हुआ था। वे इक्ष्वाकु वंश के राजा जितारी और रानी सेना के पुत्र थे। सम्भवनाथ जी का प्रतीक चिन्ह घोड़ा है। उन्होंने सांसारिक जीवन त्यागकर आत्म-अनुशासन और तपस्या का मार्ग अपनाया और अंततः कैवल्य ज्ञान प्राप्त किया। उन्होंने अपने उपदेशों के माध्यम से सत्य, अहिंसा, और आत्म-संयम के महत्व को फैलाया, जिससे अनगिनत लोगों को मोक्ष का मार्ग प्राप्त हुआ। जैन धर्म में उनका महत्वपूर्ण स्थान है और वे श्रद्धापूर्वक पूजे जाते हैं।

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