जैन धर्म के त्रिरत्न सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान और सम्यक् आचरण हैं, जो मोक्ष प्राप्ति के मार्ग को प्रशस्त करते हैं। ये तीनों रत्न एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं और एक साथ मिलकर ही पूर्णता प्रदान करते हैं।
सम्यक् दर्शन (सही दृष्टिकोण): यह सत्य में विश्वास और तीर्थंकरों के उपदेशों में श्रद्धा रखने को दर्शाता है। इसका अर्थ है सही गुरु, सही देव और सही शास्त्र में विश्वास करना। सम्यक् दर्शन, संसार और मोक्ष के स्वरूप को समझने की पहली सीढ़ी है।
सम्यक् ज्ञान (सही ज्ञान): यह वास्तविकता का सही और पूर्ण ज्ञान है। यह आत्मा, कर्म, और पुनर्जन्म के सिद्धांतों को सही ढंग से समझने पर आधारित है। सही ज्ञान, भ्रम और अज्ञानता को दूर करता है, जिससे सही मार्ग पर चलने में मदद मिलती है। यह शास्त्रों के अध्ययन और मनन से प्राप्त होता है।
सम्यक् आचरण (सही आचरण): यह सही ज्ञान के अनुसार जीवन जीने का तरीका है। इसमें अहिंसा (किसी भी जीव को नुकसान न पहुंचाना), सत्य (हमेशा सच बोलना), अस्तेय (चोरी न करना), ब्रह्मचर्य (इन्द्रियों पर नियंत्रण) और अपरिग्रह (गैर-आसक्ति) जैसे पांच महाव्रतों का पालन करना शामिल है। सम्यक् आचरण, मन, वचन और कर्म से शुद्धता लाता है।
इन तीनों रत्नों का पालन करके, एक जैन अनुयायी कर्मों के बंधन से मुक्त हो सकता है और मोक्ष की ओर बढ़ सकता है। ये त्रिरत्न जैन धर्म के नैतिक और आध्यात्मिक मार्गदर्शन का आधार हैं।
Answered :- 2022-12-09 07:33:51
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