जैन धर्मानुसार ज्ञान के तीन प्रमुख स्रोत हैं: 1. प्रत्यक्ष ज्ञान (Perception): यह इंद्रियों (आँख, कान, नाक, जीभ और त्वचा) और मन के माध्यम से प्राप्त होने वाला ज्ञान है। जैन धर्म में, इसे दो भागों में बांटा गया है: इंद्रिय प्रत्यक्ष: यह इंद्रियों द्वारा प्राप्त होने वाला सामान्य ज्ञान है। उदाहरण के लिए, किसी वस्तु को देखना या सुनना। अतींद्रिय प्रत्यक्ष (Extra-sensory Perception): यह विशेष क्षमताओं के माध्यम से प्राप्त होने वाला ज्ञान है, जो सामान्य इंद्रियों से परे होता है। यह केवल आत्म-अनुशासन और ध्यान के माध्यम से प्राप्त होता है। 2. अनुमान (Inference): यह तर्क और कारण के आधार पर प्राप्त होने वाला ज्ञान है। यह प्रत्यक्ष ज्ञान पर आधारित होता है, जहाँ देखे गए तथ्यों के आधार पर निष्कर्ष निकाले जाते हैं। उदाहरण के लिए, धुएं को देखकर आग का अनुमान लगाना। 3. आगम (Scriptural Authority): यह तीर्थंकरों (जैन धर्म के आध्यात्मिक गुरु) के वचनों और उपदेशों पर आधारित ज्ञान है। तीर्थंकरों ने केवल्य ज्ञान (पूर्ण ज्ञान) प्राप्त किया होता है, इसलिए उनके वचन सत्य और प्रामाणिक माने जाते हैं। आगम को जैन धर्म में ज्ञान का सबसे महत्वपूर्ण स्रोत माना जाता है, क्योंकि यह आत्म-ज्ञान और मोक्ष के मार्ग को दर्शाता है। आगम में जैन सिद्धांतों, नैतिक मूल्यों और कर्म के नियमों का विस्तृत वर्णन है।

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