अकबर ने इलाही संवत को फसली संवत भी कहा जाता था। यह संवत अकबर द्वारा 1584 ईस्वी में शुरू किया गया था, जिसका मुख्य उद्देश्य हिजरी संवत (इस्लामी कैलेंडर) और स्थानीय कृषि चक्रों के बीच समन्वय स्थापित करना था। "फसली" शब्द का अर्थ ही "कृषि" या "फसल" से संबंधित है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि इस संवत का उद्देश्य कृषि गतिविधियों और करों के निर्धारण को सुव्यवस्थित करना था। इलाही संवत को शुरू करने के पीछे अकबर की दूरदर्शिता थी। उस समय, हिजरी कैलेंडर चंद्र कैलेंडर होने के कारण सौर कैलेंडर से मेल नहीं खाता था, जिससे कृषि करों के निर्धारण में समस्या आती थी। फसली संवत एक सौर कैलेंडर था, जो कृषि चक्र के साथ सीधा संबंध रखता था, जिससे किसानों के लिए करों का भुगतान करना आसान हो गया। इस संवत के महीनों के नाम फ़ारसी नामों पर आधारित थे, लेकिन इसे भारतीय कृषि परिदृश्य के अनुरूप ढाला गया था। इलाही संवत, अकबर के धार्मिक समन्वय के प्रयासों का भी प्रतीक था, क्योंकि यह इस्लामी और भारतीय परंपराओं का मिश्रण था। हालांकि, इलाही संवत व्यापक रूप से लोकप्रिय नहीं हो पाया और अकबर के बाद यह धीरे-धीरे प्रचलन से बाहर हो गया। फिर भी, यह अकबर के शासनकाल में प्रशासनिक और वित्तीय सुधारों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बना रहा।

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