गुप्त वंश के स्वर्ण सिक्कों को दीनार कहा जाता था, यह बिल्कुल सही है। लेकिन इस जानकारी को और अधिक विस्तृत किया जा सकता है:
दीनार की उत्पत्ति: 'दीनार' शब्द वास्तव में एक रोमन शब्द 'डेनारियस' से लिया गया है। यह दर्शाता है कि गुप्त शासकों पर रोमन साम्राज्य की मुद्राओं का प्रभाव था।
दीनार का वजन और शुद्धता: गुप्तकालीन दीनार अपने उत्कृष्ट निष्पादन और उच्च सोने की शुद्धता के लिए जाने जाते थे। आमतौर पर, इन सिक्कों का वजन लगभग 120-124 ग्रेन (लगभग 7.77-8.03 ग्राम) होता था।
सिक्कों पर चित्रण: गुप्त दीनार विभिन्न प्रकार के डिजाइन और रूपांकनों को प्रदर्शित करते थे। सिक्कों पर राजाओं को युद्ध करते हुए, शिकार करते हुए, या देवी-देवताओं की पूजा करते हुए दर्शाया गया है। कुछ सिक्कों पर पौराणिक कथाओं के दृश्य भी अंकित हैं। राजा समुद्रगुप्त के सिक्के विशेष रूप से वीणा बजाते हुए दर्शाते हैं, जो कला और संगीत के प्रति उनके प्रेम को दर्शाता है।
दीनार का आर्थिक महत्व: दीनार गुप्त साम्राज्य की आर्थिक समृद्धि का प्रतीक था। सोने की उच्च शुद्धता के कारण, ये सिक्के व्यापार और वाणिज्य में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते थे।
दीनार के प्रकार: गुप्त काल में विभिन्न प्रकार के दीनार प्रचलित थे, जिन्हें शासकों और उनके द्वारा जारी किए गए विशिष्ट रूपांकनों के आधार पर वर्गीकृत किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, धनुर्धर प्रकार, राजा-रानी प्रकार, और अश्वमेध प्रकार के सिक्के काफी प्रसिद्ध थे।
दीनार का पतन: बाद के गुप्त शासकों के समय में, दीनार की सोने की शुद्धता में गिरावट आई, जो साम्राज्य की आर्थिक स्थिति में कमजोरी का संकेत देती है।
संक्षेप में, गुप्तकालीन दीनार न केवल मुद्रा के रूप में महत्वपूर्ण थे, बल्कि वे गुप्त साम्राज्य की कला, संस्कृति, धर्म और आर्थिक समृद्धि के भी प्रतीक थे।
Answered :- 2022-12-09 15:43:35
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