गुप्त शासक श्रीगुप्त की उपाधि आदिराज एवं महाराज थी, जो उनके प्रारंभिक शासक होने और गुप्त वंश की नींव रखने का संकेत देती हैं। "आदिराज" उपाधि संभवतः उनकी स्वतंत्र सत्ता की शुरुआत को दर्शाती है, यानी वे किसी बड़े साम्राज्य के अधीन सामंत नहीं थे। वहीं, "महाराज" उपाधि, जो कि "राजा" से थोड़ी बड़ी है, उनकी शक्ति और प्रतिष्ठा को दर्शाती है। श्रीगुप्त के बारे में ऐतिहासिक जानकारी मुख्य रूप से उनके प्रपौत्र समुद्रगुप्त के प्रयाग प्रशस्ति अभिलेख से मिलती है। इस अभिलेख में उन्हें गुप्त वंश का संस्थापक बताया गया है, लेकिन उनके शासनकाल और साम्राज्य के विस्तार के बारे में अधिक जानकारी उपलब्ध नहीं है। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि श्रीगुप्त संभवतः कुषाण साम्राज्य के अधीन एक सामंत थे, जिन्होंने बाद में अपनी शक्ति बढ़ाई और स्वतंत्र राज्य की स्थापना की। हालांकि, यह केवल एक अनुमान है और इसका कोई ठोस प्रमाण नहीं है। उनकी उपाधियों से यह स्पष्ट है कि श्रीगुप्त ने गुप्त वंश को एक महत्वपूर्ण स्थान पर पहुंचाया, जिसके बाद उनके उत्तराधिकारियों ने इसे एक शक्तिशाली साम्राज्य में बदल दिया। श्रीगुप्त की उपाधियां और उनका प्रारंभिक शासन गुप्त साम्राज्य के उदय की कहानी का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं।

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