1935 में इटली द्वारा इथोपिया पर आक्रमण एक महत्वपूर्ण घटना थी, जिसके दूरगामी परिणाम हुए। इटली, बेनिटो मुसोलिनी के नेतृत्व में, एक नया रोमन साम्राज्य स्थापित करने और अफ्रीका में अपनी औपनिवेशिक महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए उत्सुक था। इथोपिया, उस समय 'एबिसिनिया' के रूप में जाना जाता था, एक स्वतंत्र अफ्रीकी राष्ट्र था, जो इटली के औपनिवेशिक विस्तार के रास्ते में खड़ा था। आक्रमण की शुरुआत अक्टूबर 1935 में हुई, जब इतालवी सेनाओं ने इथोपिया की सीमा पार की। इटली ने बेहतर सैन्य शक्ति का प्रदर्शन किया, जिसमें टैंक, हवाई जहाज और जहरीली गैस शामिल थी, जबकि इथोपियाई सेनाएं पुरानी और अप्रशिक्षित थीं। आक्रमण क्रूर था, जिसमें नागरिकों पर हमले और युद्ध अपराध शामिल थे। आक्रमण का अंतर्राष्ट्रीय समुदाय ने विरोध किया, और लीग ऑफ नेशंस ने इटली पर प्रतिबंध लगाए। हालांकि, ये प्रतिबंध प्रभावी नहीं थे, और इटली ने 1936 में इथोपिया पर कब्जा कर लिया। सम्राट हैले सेलासी को निर्वासित कर दिया गया, और इथोपिया को इतालवी पूर्वी अफ्रीका का हिस्सा घोषित कर दिया गया। इतालवी कब्ज़ा 1941 तक चला, जब ब्रिटिश सेनाओं और इथोपियाई प्रतिरोध बलों ने मिलकर इटली को हराया और इथोपिया को स्वतंत्र कराया। इथोपिया पर इतालवी आक्रमण द्वितीय विश्व युद्ध के शुरुआती कारणों में से एक माना जाता है, क्योंकि इसने लीग ऑफ नेशंस की कमजोरी और सामूहिक सुरक्षा की विफलता को उजागर किया। इसने अफ्रीका में औपनिवेशिकवाद के खिलाफ प्रतिरोध को भी प्रेरित किया।

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