अकबर ने 1564 ईसवी में जजिया कर समाप्त कर दिया था। यह एक महत्वपूर्ण कदम था जो अकबर की धार्मिक सहिष्णुता की नीति का हिस्सा था। जजिया कर गैर-मुस्लिमों पर लगाया जाने वाला एक कर था जिसके बदले में उन्हें सैन्य सेवा से छूट मिलती थी और राज्य द्वारा सुरक्षा प्रदान की जाती थी। इसे हटाने का कारण सिर्फ धार्मिक सद्भाव को बढ़ावा देना नहीं था, बल्कि इसके पीछे राजनीतिक और आर्थिक कारण भी थे। अकबर को यह अहसास हुआ कि जजिया कर जनता में असंतोष पैदा कर रहा है, खासकर हिन्दू आबादी में, जो मुगल साम्राज्य का एक बड़ा हिस्सा थी। इस कर को हटाने से अकबर ने अपने शासन के प्रति निष्ठा और समर्थन को मजबूत करने की उम्मीद की। इस फैसले का दूरगामी प्रभाव पड़ा। इसने न केवल हिन्दू और मुस्लिम समुदायों के बीच संबंधों को बेहतर बनाने में मदद की, बल्कि मुगल साम्राज्य को अधिक समावेशी और एकीकृत बनाने में भी योगदान दिया। अकबर की इस नीति की इतिहासकारों ने व्यापक रूप से सराहना की है क्योंकि यह धार्मिक सहिष्णुता और सामाजिक सद्भाव का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। इसके अलावा, जजिया कर को समाप्त करने से राज्य की आय में वृद्धि हुई क्योंकि इससे व्यापार और वाणिज्य को बढ़ावा मिला और कर संग्रह प्रक्रिया अधिक कुशल हो गई।

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