जैन भिक्षु समूह के प्रमुख को जैन सिद्धों की आचार्य श्रेणी में रखा गया है। विस्तार: जैन धर्म में, आचार्य पद अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। आचार्य न केवल एक भिक्षु समूह (संघ) के प्रमुख होते हैं, बल्कि वे आध्यात्मिक गुरु और धर्म के संरक्षक भी होते हैं। आचार्य पद तक पहुंचने के लिए एक जैन भिक्षु को कठोर तपस्या, गहन ज्ञान, और उत्कृष्ट आचरण का प्रदर्शन करना होता है। आचार्य के कर्तव्य अनेक होते हैं, जिनमें प्रमुख हैं: शिष्यों को शिक्षित करना: वे अपने शिष्यों को जैन सिद्धांतों, दर्शन, और प्रथाओं का ज्ञान प्रदान करते हैं। संघ का मार्गदर्शन करना: वे संघ के संचालन और प्रबंधन के लिए जिम्मेदार होते हैं, यह सुनिश्चित करते हुए कि सभी सदस्य धार्मिक नियमों और अनुशासन का पालन करें। धर्म का प्रचार करना: वे समाज में जैन धर्म का प्रचार करते हैं और लोगों को धार्मिक मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करते हैं। नैतिकता का पालन करना: वे अपने आचरण से नैतिकता का उत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत करते हैं, ताकि अन्य लोग उनसे प्रेरणा ले सकें। ज्ञान की रक्षा करना: वे जैन शास्त्रों और ज्ञान की रक्षा करते हैं और आने वाली पीढ़ियों तक इसे पहुंचाते हैं। आचार्य पद जैन धर्म में एक सर्वोच्च पद माना जाता है और यह सम्मान, ज्ञान, और आध्यात्मिक शक्ति का प्रतीक है। आचार्य अपने शिष्यों और अनुयायियों के लिए एक आदर्श होते हैं और जैन धर्म के विकास और संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इसलिए, जैन भिक्षु समूह के प्रमुख को आचार्य श्रेणी में रखना उनके महत्व और उत्तरदायित्व को दर्शाता है।

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