अकबर ने सम्राट बनने के बाद बैरम खाँ को 'वकील-ए-मुतलक' के पद पर नियुक्त किया था, जिसे वज़ीर-ए-आज़म या प्रधानमंत्री के समकक्ष माना जा सकता है। यह नियुक्ति अकबर के लिए बेहद महत्वपूर्ण थी क्योंकि उस समय अकबर युवा थे और उन्हें शासन का विस्तृत अनुभव नहीं था। बैरम खाँ, जो कि एक अनुभवी सैनिक और कुशल प्रशासक थे, ने अकबर के संरक्षक के रूप में कार्य किया और साम्राज्य के शुरुआती वर्षों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
बैरम खाँ ने मुगल साम्राज्य को मजबूत करने और अकबर को सिंहासन पर स्थापित करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने हेमू के साथ पानीपत की दूसरी लड़ाई (1556) में मुगल सेना का नेतृत्व किया और निर्णायक जीत हासिल की। इसके अलावा, उन्होंने साम्राज्य में विद्रोहों को दबाने और शांति व्यवस्था बनाए रखने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
हालांकि, बाद में अकबर और बैरम खाँ के बीच मतभेद उत्पन्न हो गए। बैरम खाँ की अत्यधिक शक्ति और कुछ फैसलों के कारण दरबार में उनके खिलाफ षडयंत्र होने लगे। 1560 में, अकबर ने बैरम खाँ को बर्खास्त कर दिया और उन्हें मक्का जाने का आदेश दिया। बैरम खाँ मक्का जाते समय गुजरात में मारे गए।
संक्षेप में, अकबर ने बैरम खाँ को 'वकील-ए-मुतलक' के पद पर नियुक्त किया था, जो कि एक प्रधानमंत्री के समान था। बैरम खाँ ने अकबर के शुरुआती शासनकाल में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, लेकिन बाद में उनके बीच मतभेद हो गए।
Answered :- 2022-12-12 08:21:12
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