गुप्त राजाओं ने परमभागवत की धार्मिक उपाधि धारण की थी, जो वैष्णव धर्म (भगवान विष्णु की पूजा) के प्रति उनकी गहरी आस्था को दर्शाती है। यह उपाधि, जिसका अर्थ है "भगवान के परम भक्त", गुप्त शासकों द्वारा अपने राजधर्म और धार्मिक झुकाव को सार्वजनिक रूप से घोषित करने का एक तरीका था। समुद्रगुप्त, चंद्रगुप्त द्वितीय, और कुमारगुप्त प्रथम जैसे शक्तिशाली गुप्त राजाओं ने इस उपाधि का प्रयोग किया, जो उनके शासनकाल के दौरान वैष्णव धर्म के बढ़ते प्रभाव को दर्शाता है। इस उपाधि को धारण करने का एक निहितार्थ यह भी था कि वे देवताओं द्वारा समर्थित थे और धरती पर दिव्य शासन स्थापित करने के लिए नियुक्त किए गए थे। इसके अलावा, परमभागवत की उपाधि गुप्त राजाओं की धार्मिक सहिष्णुता को भी उजागर करती है। यद्यपि वे वैष्णव धर्म के प्रति समर्पित थे, उन्होंने अन्य धर्मों, जैसे बौद्ध धर्म और जैन धर्म का भी सम्मान किया और उन्हें संरक्षण दिया। उनके शासनकाल में, विभिन्न धर्मों के अनुयायियों को शांति और सद्भाव के साथ रहने की अनुमति थी, जो गुप्त साम्राज्य की धार्मिक नीतियों की एक महत्वपूर्ण विशेषता थी। इसलिए, परमभागवत की उपाधि केवल एक धार्मिक प्रतीक नहीं थी, बल्कि गुप्त राजाओं की राजनीतिक और सामाजिक विचारधारा का भी प्रतिनिधित्व करती थी।

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