महावीर स्वामी ने जैन भिक्षुओं को नग्न रहने की शिक्षा दी, यह जैन धर्म के दिगंबर संप्रदाय के मूल सिद्धांतों में से एक है। इसे 'दिगंबर' कहा जाता है, जिसका अर्थ है 'आकाश को वस्त्र के रूप में धारण करने वाला'। महावीर स्वामी का मानना था कि पूर्ण त्याग और सांसारिक वस्तुओं से विरक्ति मोक्ष प्राप्ति का मार्ग है। नग्नता, इस त्याग का चरम रूप है। यह भौतिक वस्तुओं, जैसे कपड़ों के प्रति भी आसक्ति को त्यागने का प्रतीक है। दिगंबर भिक्षु मानते हैं कि कपड़ों की आवश्यकता शारीरिक शर्म या ठंड से बचाने के लिए होती है, और एक सच्चे साधक को इन मानवीय कमजोरियों से ऊपर उठना चाहिए। नग्नता अहंकार और सामाजिक बंधनों को तोड़ने का भी प्रतीक है। हालांकि, यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि जैन धर्म का दूसरा प्रमुख संप्रदाय, श्वेतांबर, सफेद वस्त्र धारण करने की अनुमति देता है। श्वेतांबर संप्रदाय का मानना है कि कपड़ों का त्याग आवश्यक नहीं है, और आध्यात्मिक उन्नति के लिए अन्य प्रकार के त्याग भी महत्वपूर्ण हैं। इसलिए, नग्न रहने की शिक्षा केवल दिगंबर जैन भिक्षुओं के लिए है, और यह महावीर स्वामी के त्याग और विरक्ति के दर्शन का एक अभिन्न अंग है। यह शिक्षा आज भी दिगंबर जैन समुदाय में महत्वपूर्ण है, और यह उनके आध्यात्मिक जीवन का एक महत्वपूर्ण पहलू है।

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