जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ काशी के इक्ष्वाकु वंशीय राजा अश्वसेन के पुत्र थे। यह जानकारी महत्वपूर्ण है, लेकिन पार्श्वनाथ के जीवन और उनके योगदान को समझने के लिए कुछ अतिरिक्त विवरण महत्वपूर्ण हैं: समयकाल: पार्श्वनाथ को जैन धर्म के इतिहास में एक महत्वपूर्ण व्यक्ति माना जाता है। माना जाता है कि वे महावीर स्वामी से लगभग 250 वर्ष पूर्व हुए थे, लगभग 8वीं शताब्दी ईसा पूर्व। माता: उनकी माता का नाम वामा देवी था। त्याग: पार्श्वनाथ ने 30 वर्ष की आयु में गृह त्याग कर सन्यास ले लिया था। उपदेश: उन्होंने अहिंसा, सत्य, अस्तेय (चोरी न करना), और अपरिग्रह (गैर-संलग्नता) के सिद्धांतों का उपदेश दिया, जो जैन धर्म के महत्वपूर्ण अंग हैं। इन्हें 'चतुर्याम धर्म' भी कहा जाता है। महावीर स्वामी ने बाद में इसमें ब्रह्मचर्य को जोड़कर इसे 'पंच महाव्रत' बनाया। चिह्न: पार्श्वनाथ को सर्प के प्रतीक से पहचाना जाता है। उनकी मूर्तियों में अक्सर उनके सिर के ऊपर एक सर्प को दर्शाया जाता है। लोकप्रियता: पार्श्वनाथ को जैन धर्म में व्यापक रूप से पूजा जाता है, और उनके अनुयायी पूरे भारत में फैले हुए हैं। यह अतिरिक्त जानकारी पार्श्वनाथ के जीवन और जैन धर्म में उनके महत्व को बेहतर ढंग से समझने में मदद करती है।

New Questions