समुद्रगुप्त, गुप्त वंश के एक महान शासक थे, और प्रयाग प्रशस्ति अभिलेख (प्रयाग प्रशस्ति शिलालेख) उनके शासनकाल और विजयों की जानकारी का एक महत्वपूर्ण स्रोत है। यह अभिलेख, जो मूल रूप से अशोक स्तंभ पर उत्कीर्ण है, वर्तमान में उत्तर प्रदेश के प्रयागराज (इलाहाबाद) में स्थित है। अतिरिक्त जानकारी: रचना: प्रयाग प्रशस्ति की रचना समुद्रगुप्त के दरबारी कवि और मंत्री, हरिषेण द्वारा की गई थी। भाषा और शैली: यह अभिलेख संस्कृत भाषा में लिखा गया है और इसमें चंपू शैली (गद्य और पद्य का मिश्रण) का प्रयोग किया गया है। सामग्री: प्रयाग प्रशस्ति में समुद्रगुप्त की विजयों, उसके शासनकाल की नीतियों, उसकी सैन्य शक्ति और उसकी उदारता का वर्णन किया गया है। यह अभिलेख बताता है कि उसने आर्यावर्त (उत्तरी भारत) के कई राजाओं को हराया और दक्षिण भारत के शासकों को भी अपनी अधीनता स्वीकार करने के लिए मजबूर किया। ऐतिहासिक महत्व: प्रयाग प्रशस्ति समुद्रगुप्त के साम्राज्य विस्तार और गुप्त वंश की शक्ति का प्रमाण है। यह गुप्त काल के इतिहास को समझने के लिए एक महत्वपूर्ण स्रोत है। अन्य जानकारी: अभिलेख में समुद्रगुप्त को "धरणीबन्ध" (पृथ्वी को बांधने वाला) और "अप्रतिरथ" (जिसका कोई प्रतिद्वंद्वी न हो) जैसे विशेषणों से सम्मानित किया गया है, जो उसकी शक्ति और प्रतिष्ठा को दर्शाते हैं। यह अभिलेख समुद्रगुप्त को एक कुशल योद्धा, कला प्रेमी और विद्वान संरक्षक के रूप में चित्रित करता है। अशोक स्तंभ: ध्यान देने योग्य बात है कि प्रयाग प्रशस्ति मूल रूप से अशोक स्तंभ पर खुदी हुई है, जिस पर पहले से ही अशोक के शिलालेख थे। बाद में, मुगल बादशाह जहांगीर ने भी इस स्तंभ पर अपना एक शिलालेख उत्कीर्ण करवाया। संक्षेप में, प्रयाग प्रशस्ति समुद्रगुप्त के बारे में एक विस्तृत और महत्वपूर्ण ऐतिहासिक दस्तावेज है, जो उनके शासनकाल की व्यापक जानकारी प्रदान करता है।

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