जैन धर्म के 18वें तीर्थंकर अरनाथ (अरहनाथ) थे। उनका जन्म हस्तिनापुर में हुआ था, जो वर्तमान उत्तर प्रदेश में स्थित है। उनके पिता का नाम सुदर्शन राजा था और माता का नाम देवी मित्रसेना था। अरनाथ ने सांसारिक सुखों का त्याग कर युवावस्था में ही संन्यास ले लिया था। उन्होंने कठोर तपस्या और ध्यान के माध्यम से आत्मज्ञान प्राप्त किया। जैन धर्म में, तीर्थंकरों को ऐसे आध्यात्मिक गुरु माना जाता है जिन्होंने अपनी तपस्या और ज्ञान से मोक्ष प्राप्त किया और दूसरों को भी मुक्ति का मार्ग दिखाया। अरनाथ ने अपने अनुयायियों को अहिंसा, सत्य, अस्तेय (चोरी न करना), ब्रह्मचर्य (संयम) और अपरिग्रह (गैर-कब्जा) के पांच प्रमुख सिद्धांतों का पालन करने का उपदेश दिया। उन्होंने कर्मों के बंधन से मुक्त होने और जन्म-मृत्यु के चक्र से छुटकारा पाने के लिए सही ज्ञान, सही दर्शन और सही आचरण के महत्व पर जोर दिया। जैन धर्म में अरनाथ को एक महत्वपूर्ण तीर्थंकर माना जाता है, और उनके उपदेश आज भी जैन समुदाय के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं। उनकी शिक्षाएं हमें शांतिपूर्ण और अहिंसक जीवन जीने के लिए प्रेरित करती हैं।

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