जैन धर्म के 19वें तीर्थंकर मल्लिनाथ थे। वे श्वेतांबर परंपरा के अनुसार स्त्री रूप में माने जाते हैं, हालांकि दिगंबर परंपरा में उन्हें पुरुष माना गया है। मल्लिनाथ का जन्म मिथिला नगरी में राजा कुंभ और रानी प्रभावती के घर हुआ था। जैन ग्रंथों के अनुसार, मल्लिनाथ अत्यंत रूपवान और तेजस्वी थे। उनके गुणों से प्रभावित होकर अनेक राजाओं ने अपनी पुत्रियों का विवाह उनसे करने की इच्छा व्यक्त की। सांसारिक बंधनों से विरक्त मल्लिनाथ ने विवाह से इनकार कर दिया और दीक्षा लेकर तपस्या करने चले गए। तीर्थंकर बनने से पहले उन्होंने कठोर तपस्या की और कैवल्य ज्ञान प्राप्त किया। मल्लिनाथ ने अपने उपदेशों के माध्यम से सत्य, अहिंसा, अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने कर्मों के बंधन से मुक्ति पाने और मोक्ष प्राप्त करने का मार्ग दिखाया। मल्लिनाथ के जीवन से हमें यह प्रेरणा मिलती है कि रूप और सौंदर्य अस्थायी हैं, और सच्चे सुख की प्राप्ति आत्म-अनुशासन और आध्यात्मिक विकास में निहित है। उनका जीवन त्याग, तपस्या और ज्ञान का प्रतीक है।

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