प्रथम जैन संगीति के अध्यक्ष स्थूलभद्र थे। यह संगीति लगभग 300 ईसा पूर्व में पाटलिपुत्र (वर्तमान पटना) में आयोजित की गई थी। स्थूलभद्र एक प्रमुख जैन भिक्षु थे और भद्रबाहु के शिष्य थे। उद्देश्य: इस संगीति का मुख्य उद्देश्य जैन धर्म के सिद्धांतों को व्यवस्थित करना और आगम साहित्य (जैन ग्रंथों) को संकलित करना था। भद्रबाहु के नेतृत्व में एक समूह के दक्षिण भारत चले जाने के बाद, जैन समुदाय में मतभेद उत्पन्न हो गए थे। स्थूलभद्र के नेतृत्व में इस संगीति का आयोजन मतभेदों को दूर करने और धर्म को एक सूत्र में बांधने के लिए किया गया। परिणाम: इस संगीति में, 12 अंगों का संकलन किया गया, जो जैन धर्म के मुख्य ग्रंथ माने जाते हैं। हालांकि, दिगंबर संप्रदाय ने इस संकलन को स्वीकार नहीं किया, जिससे जैन धर्म दो प्रमुख संप्रदायों - श्वेतांबर और दिगंबर - में विभाजित हो गया। श्वेतांबरों ने पाटलिपुत्र संगीति में संकलित आगमों को स्वीकार किया, जबकि दिगंबरों का मानना था कि मूल आगम लुप्त हो गए हैं। महत्व: प्रथम जैन संगीति जैन धर्म के इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना थी। इसने जैन धर्म के सिद्धांतों को व्यवस्थित करने और आगम साहित्य को संकलित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसने जैन धर्म के भविष्य को भी आकार दिया, क्योंकि इसने श्वेतांबर और दिगंबर संप्रदायों के बीच विभाजन की नींव रखी। स्थूलभद्र का योगदान: स्थूलभद्र ने न केवल संगीति की अध्यक्षता की, बल्कि उन्होंने जैन धर्म के सिद्धांतों को स्पष्ट करने और उन्हें एकरूपता देने में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्हें जैन धर्म के इतिहास में एक महत्वपूर्ण व्यक्ति माना जाता है।

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