जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव, जिन्हें आदिनाथ भी कहा जाता है, का प्रतीक चिन्ह सांड़ (वृषभ) था। यह सांड़ शक्ति, साहस, और दृढ़ता का प्रतीक है। ऋषभदेव जैन धर्म में एक महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। उन्हें इस युग के पहले धर्मगुरु और मानव सभ्यता के संस्थापक के रूप में माना जाता है। माना जाता है कि उन्होंने लोगों को कृषि, लेखन, और कला जैसे ज्ञान से परिचित कराया। सांड़ का प्रतीक चिन्ह ऋषभदेव के गुणों को दर्शाता है: शक्ति और दृढ़ता: जिस प्रकार सांड़ अपनी शक्ति के लिए जाना जाता है, उसी प्रकार ऋषभदेव ने अपने तप और ध्यान से आत्मज्ञान प्राप्त किया। धैर्य: सांड़ एक मेहनती जानवर है, जो लगातार कार्य करता रहता है। इसी प्रकार, ऋषभदेव ने लोगों को धर्म के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया। पौरुष: यह त्याग और सहनशीलता का भी प्रतीक है। जैन कला और मूर्तिकला में, ऋषभदेव को अक्सर सांड़ के साथ चित्रित किया जाता है, जिससे उनकी पहचान स्थापित होती है। यह प्रतीक चिन्ह जैन धर्म के अनुयायियों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है और उन्हें ऋषभदेव के आदर्शों की याद दिलाता है।

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