प्रथम जैन संगीति लगभग 300 ईसा पूर्व पाटलिपुत्र (वर्तमान पटना, बिहार) में हुई थी। यह संगीति स्थूलभद्र के नेतृत्व में आयोजित की गई थी, जो उस समय के प्रमुख जैन आचार्य थे। इस संगीति का मुख्य उद्देश्य जैन धर्म के सिद्धांतों और शिक्षाओं को व्यवस्थित करना और उन्हें आगमों (धर्मग्रंथों) के रूप में संकलित करना था।
यह संगीति उस समय हुई जब जैन समुदाय में एक बड़ा विभाजन हो गया था - श्वेतांबर और दिगंबर संप्रदाय। भीषण अकाल के कारण, भद्रबाहु के नेतृत्व में कई जैन मुनि दक्षिण भारत चले गए थे, जबकि स्थूलभद्र उत्तर भारत में ही रहे। जब दक्षिणी मुनि वापस लौटे, तो उन्होंने उत्तरी मुनियों द्वारा किए गए परिवर्तनों को स्वीकार नहीं किया, जिसके परिणामस्वरूप दोनों संप्रदायों में मतभेद उत्पन्न हो गए।
प्रथम जैन संगीति में, 12 अंगों (प्रमुख धार्मिक ग्रंथों) का संकलन किया गया, जो श्वेतांबर परंपरा का आधार बने। हालाँकि, दिगंबर संप्रदाय ने इन आगमों को स्वीकार नहीं किया और उनका मानना है कि मूल शिक्षाएं खो गई हैं।
इसलिए, यह संगीति जैन धर्म के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ थी, जिसने जैन धर्म की परंपराओं और शिक्षाओं को स्थायी रूप से आकार दिया।
Answered :- 2022-12-09 07:01:32
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