जैन धर्म के चौथे तीर्थंकर अभिनंदन स्वामी थे, जिन्हें अभिनंदननाथ के नाम से भी जाना जाता है। वे इक्ष्वाकु वंश में जन्मे थे और उनके पिता का नाम राजा संवर था तथा माता का नाम सिद्धार्था देवी था। अभिनंदन स्वामी का जन्म अयोध्या में हुआ था। जैन धर्म में, हर तीर्थंकर का अपना एक प्रतीक चिन्ह होता है, और अभिनंदन स्वामी का प्रतीक चिन्ह स्वर्ण वानर (Golden Monkey) है। तीर्थंकर वे होते हैं जिन्होंने अपनी तपस्या और साधना के माध्यम से कैवल्य ज्ञान (सर्वोच्च ज्ञान) प्राप्त किया है और संसार के दुखों से मुक्ति का मार्ग दिखाया है। अभिनंदन स्वामी ने अपने पूर्व कर्मों को क्षय करके और कठोर तपस्या करके आत्मज्ञान प्राप्त किया। उन्होंने जैन धर्म के सिद्धांतों का प्रचार किया, जैसे कि अहिंसा, सत्य, अस्तेय (चोरी न करना), ब्रह्मचर्य (संयम), और अपरिग्रह (गैर-अनुग्रह)। उन्होंने अपने अनुयायियों को सही मार्ग पर चलने और मोक्ष प्राप्त करने के लिए प्रेरित किया। यद्यपि उनके जीवन और उपदेशों के बारे में विस्तृत जानकारी ऐतिहासिक ग्रंथों में कम मिलती है, जैन समुदाय में उन्हें श्रद्धापूर्वक स्मरण किया जाता है और उनकी शिक्षाओं का पालन किया जाता है। जैन धर्म में तीर्थंकरों का महत्वपूर्ण स्थान है, और अभिनंदन स्वामी उन 24 तीर्थंकरों में से एक हैं जिन्होंने जैन धर्म को स्थापित करने और उसे आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

जैन धर्म के तीर्थंकर अजितनाथ (द्वितीय) का प्रतीक चिन्ह क्या था?

जैन धर्म के तीर्थंकर अरिष्टनेमि (बाइसवें) का प्रतीक चिन्ह क्या था?

जैन धर्म के तीर्थंकर ऋषभदेव (प्रथम) का प्रतीक चिन्ह क्या था?

जैन धर्म के तीर्थंकर नामि (इक्कीसवें) का प्रतीक चिन्ह क्या था?

जैन धर्म के तीर्थंकर पार्श्व (तेइसवें) का प्रतीक चिन्ह क्या था?

जैन धर्म के तीर्थंकर महावीर (चौबीसवें) का प्रतीक चिन्ह क्या था?

जैन धर्म के तीर्थंकर शांति (सोलहवां) का प्रतीक चिन्ह क्या था?

जैन धर्म के तीर्थंकर पार्श्व (सप्तम) का प्रतीक चिन्ह क्या था?

जैन धर्म के तीर्थंकर संभव (तृतीय) का प्रतीक चिन्ह क्या था?

जैन धर्म के तीसरे तीर्थंकर कौन थे?

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