जैन धर्म के बाइसवें तीर्थंकर अरिष्टनेमि, जिन्हें नेमिनाथ भी कहा जाता है, का प्रतीक चिन्ह 'शंख' था। शंख का धार्मिक महत्व भारतीय संस्कृति में प्राचीन काल से रहा है और इसे पवित्रता और शुभता का प्रतीक माना जाता है। अरिष्टनेमि, भगवान कृष्ण के चचेरे भाई माने जाते हैं, और उनका जीवन त्याग और तपस्या का प्रतीक है। उन्होंने विवाह के मंडप से वापस लौटकर सांसारिक सुखों का त्याग कर दिया था और मोक्ष के मार्ग पर चल पड़े थे। शंख का प्रतीक उनके त्याग और वैराग्य की भावना को दर्शाता है। शंख की ध्वनि को भी महत्वपूर्ण माना जाता है। यह माना जाता है कि शंख की ध्वनि नकारात्मक ऊर्जा को दूर करती है और सकारात्मक वातावरण का निर्माण करती है। इसलिए, अरिष्टनेमि के प्रतीक के रूप में शंख, उनके उपदेशों और उनके द्वारा दिखाए गए मोक्ष के मार्ग की ओर एक गहरा संकेत है। यह दर्शाता है कि त्याग, तपस्या और सही मार्ग का अनुसरण करके आत्मा को शुद्ध किया जा सकता है और मोक्ष प्राप्त किया जा सकता है।

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