जैन धर्म के उपदेश भिक्षुओं के कर्तव्यों का वर्णन मूलसूत्रों में मिलता है।
मूलसूत्र, जैन आगम साहित्य का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं, विशेष रूप से श्वेतांबर संप्रदाय में। ये सूत्र भिक्षुओं (साधुओं) और भिक्षुणियों (साध्वियों) के लिए आचार-विचार, नियमों, और कर्तव्यों का विस्तृत मार्गदर्शन प्रदान करते हैं।
आचार (Conduct): मूलसूत्र भिक्षुओं को अहिंसा (non-violence), सत्य (truth), अस्तेय (non-stealing), ब्रह्मचर्य (celibacy), और अपरिग्रह (non-attachment) के पांच महाव्रतों का पालन करने के लिए विस्तृत निर्देश देते हैं। इन व्रतों का पालन किस प्रकार करना है, इसकी सूक्ष्मताएं भी बताई गई हैं, ताकि भिक्षु अपने जीवन को पूरी तरह से आध्यात्मिक उन्नति के लिए समर्पित कर सकें।
नियम (Rules): ये सूत्र दैनिक जीवन के नियमों का भी वर्णन करते हैं, जैसे भोजन कैसे प्राप्त करना है (भिक्षा कैसे मांगनी है), कहां रहना है, कैसे चलना है, कैसे बोलना है, और कैसे ध्यान करना है। इन नियमों का उद्देश्य भिक्षुओं को सांसारिक बंधनों से दूर रखना और आत्म-नियंत्रण विकसित करने में मदद करना है।
प्रायश्चित (Atonement): यदि कोई भिक्षु किसी नियम का उल्लंघन करता है, तो उसके लिए प्रायश्चित करने की प्रक्रिया भी मूलसूत्रों में दी गई है। यह प्रायश्चित पापों को धोने और फिर से सही मार्ग पर चलने में मदद करता है।
विविध सूत्र: कई मूलसूत्र हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख हैं:
आवश्यक सूत्र (Avasyaka Sutra): भिक्षुओं के लिए अनिवार्य दैनिक क्रियाओं का वर्णन।
दशवैकालिक सूत्र (Dasaveyalika Sutra): भिक्षु जीवन के दस पहलुओं का वर्णन।
उत्तराध्ययन सूत्र (Uttaradhyayana Sutra): महत्वपूर्ण उपदेश और दृष्टांत।
आचारंग सूत्र (Acaranga Sutra): भिक्षुओं के आचरण और नियमों का विस्तृत वर्णन।
Answered :- 2022-12-09 07:10:10
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