अजातशत्रु ने लिच्छवियों के विरुद्ध युद्ध में महाशिलाकन्टक तथा रथमूसल नामक दो नए शस्त्रों का प्रथम बार प्रयोग किया था। यह युद्ध प्राचीन भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना थी, और इन हथियारों का उपयोग युद्ध तकनीक में एक बड़ा बदलाव दर्शाता है। महाशिलाकन्टक एक प्रकार का पत्थर फेंकने वाला यंत्र था। यह एक बड़ी मशीन थी जिसका उपयोग दुश्मनों पर बड़े-बड़े पत्थर फेंकने के लिए किया जाता था। इससे लिच्छवियों की सेना में भारी तबाही हुई थी, क्योंकि वे इस तरह के हमले के लिए तैयार नहीं थे। यह उस समय की घेराबंदी में इस्तेमाल होने वाली आधुनिक तोप जैसा था, जो दूर से ही दुश्मन के किले को नुकसान पहुंचा सकता था। रथमूसल एक ऐसा रथ था जिसमें आगे की तरफ एक घूमता हुआ गदा लगा होता था। यह रथ दुश्मनों की पंक्तियों को तोड़ने के लिए इस्तेमाल किया जाता था। रथ तेजी से आगे बढ़ता था और उसका घूमता हुआ गदा दुश्मनों को कुचल देता था। यह एक बहुत ही विनाशकारी हथियार था जिसने लिच्छवियों की रक्षापंक्ति को तोड़ दिया। इन शस्त्रों के अलावा, अजातशत्रु ने युद्ध में कूटनीति का भी सहारा लिया। उसने लिच्छवि संघ में फूट डालने के लिए अपने मंत्री वस्सकार को भेजा, जिसने वहां वर्षों तक रहकर संघ को कमजोर कर दिया। इस आंतरिक कलह ने अजातशत्रु के लिए लिच्छवियों को हराना आसान बना दिया। अजातशत्रु की लिच्छवियों पर विजय मगध साम्राज्य के विस्तार में एक महत्वपूर्ण कदम था। इससे मगध उत्तरी भारत का सबसे शक्तिशाली राज्य बन गया। इन नए हथियारों का प्रयोग यह दर्शाता है कि अजातशत्रु न केवल एक कुशल शासक था, बल्कि एक दूरदर्शी सैन्य रणनीतिकार भी था जिसने युद्ध में नई तकनीकों का उपयोग किया।

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