जैन धर्म के 16वें तीर्थंकर शांतिनाथ थे। वे इक्ष्वाकु वंश में हस्तिनापुर के राजा विश्वसेन और रानी ऐरा के पुत्र थे। उन्हें चक्रवर्ती सम्राट के रूप में भी जाना जाता है क्योंकि उन्होंने छह खंडों पर विजय प्राप्त की थी। जन्म और प्रतीक: शांतिनाथ का जन्म ज्येष्ठ कृष्ण चतुर्दशी को रोहिणी नक्षत्र में हुआ था। उनका प्रतीक हिरण है। दीक्षा और ज्ञान: उन्होंने युवावस्था में ही सांसारिक जीवन का त्याग कर दिया और दीक्षा ग्रहण की। लंबे समय तक तपस्या करने के बाद उन्हें पौष शुक्ल नवमी को कैवल्य ज्ञान प्राप्त हुआ। उपदेश: शांतिनाथ ने अहिंसा, सत्य, अस्तेय (चोरी न करना), ब्रह्मचर्य (शुद्धता), और अपरिग्रह (गैर-आसक्ति) के जैन सिद्धांतों का प्रसार किया। उन्होंने मानवता को शांति और सद्भाव का मार्ग दिखाया। महत्व: उन्हें जैन धर्म में एक महत्वपूर्ण तीर्थंकर माना जाता है, जो शांति और करुणा का प्रतिनिधित्व करते हैं। उनके अनुयायी उन्हें आंतरिक शांति और मुक्ति प्राप्त करने के लिए प्रेरित करते हैं। मंदिर: शांतिनाथ को समर्पित कई जैन मंदिर पूरे भारत में स्थित हैं, जहाँ उनकी पूजा की जाती है। संक्षेप में, शांतिनाथ न केवल 16वें तीर्थंकर थे, बल्कि एक महान राजा और आध्यात्मिक नेता भी थे जिन्होंने अपने जीवनकाल में शांति और अहिंसा का संदेश फैलाया।

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