प्रथम जैन संगीति के समय चन्द्रगुप्त मौर्य का शासन था। यह सत्य है कि प्रथम जैन संगीति चन्द्रगुप्त मौर्य के शासनकाल में आयोजित की गई थी, लेकिन इसके साथ कुछ और महत्वपूर्ण विवरण भी जुड़े हुए हैं: वर्ष और स्थान: यह संगीति लगभग 300 ईसा पूर्व में पाटलिपुत्र (आधुनिक पटना, बिहार) में आयोजित की गई थी। परिस्थितियाँ: चन्द्रगुप्त मौर्य के शासनकाल के अंतिम वर्षों में मगध में एक भीषण अकाल पड़ा था। इस अकाल के कारण भद्रबाहु (दिगंबर संप्रदाय के नेता) अपने शिष्यों के साथ दक्षिण भारत चले गए, जबकि स्थूलभद्र (श्वेतांबर संप्रदाय के नेता) अपने अनुयायियों के साथ मगध में ही रहे। उद्देश्य: अकाल के बाद, जब जैन भिक्षु वापस लौटे, तो उन्होंने पाया कि धार्मिक ग्रंथों और आचरणों में कुछ भिन्नताएँ आ गई थीं। इसलिए, स्थूलभद्र के नेतृत्व में पाटलिपुत्र में प्रथम जैन संगीति का आयोजन किया गया ताकि जैन धर्म के सिद्धांतों और ग्रंथों को संकलित और मानकीकृत किया जा सके। परिणाम: इस संगीति में, जैन धर्म के प्रमुख आगम सूत्रों (शास्त्रों) का संकलन किया गया। हालाँकि, दिगंबर संप्रदाय ने इस संगीति के निर्णयों को स्वीकार नहीं किया, जिसके परिणामस्वरूप जैन धर्म के दो प्रमुख संप्रदायों, श्वेतांबर और दिगंबर, के बीच मतभेद और भी गहरे हो गए। श्वेतांबरों ने संकलित आगमों को स्वीकार किया, जबकि दिगंबरों का मानना था कि मूल शिक्षाएँ खो गई हैं। इस प्रकार, प्रथम जैन संगीति चन्द्रगुप्त मौर्य के शासनकाल में हुई एक महत्वपूर्ण घटना थी, जिसका जैन धर्म के इतिहास पर गहरा प्रभाव पड़ा।

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