जैन ग्रंथों में उदायिन को पितृभक्त बताया गया है, लेकिन यह वर्णन उससे कहीं अधिक विस्तृत और रोचक है। जैन साहित्य में उदायिन का चित्रण एक जटिल व्यक्तित्व के रूप में किया गया है, जिसमें न केवल पितृभक्ति बल्कि महत्वाकांक्षा, कूटनीति और धार्मिक झुकाव के पहलू भी शामिल हैं।
उदायिन, हर्यंक वंश के शासक थे और उन्हें अजातशत्रु का पुत्र माना जाता है। जैन ग्रंथों में, विशेष रूप से आवश्यक सूत्र और परिशिष्टपर्व जैसे ग्रंथों में, उदायिन के बारे में कई कथाएं मिलती हैं। उसे अपने पिता अजातशत्रु की हत्या के बाद सिंहासन पर बैठा हुआ बताया गया है, लेकिन जैन ग्रंथों में इस घटना का सीधे तौर पर उल्लेख नहीं है।
पितृभक्ति के अलावा, उदायिन को अपनी राजधानी राजगृह से पाटलिपुत्र (आधुनिक पटना) स्थानांतरित करने के लिए जाना जाता है। जैन ग्रंथों के अनुसार, पाटलिपुत्र को गंगा और सोन नदियों के संगम पर रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण स्थान माना जाता था, जो व्यापार और सैन्य सुरक्षा दोनों के लिए उपयुक्त था। उदायिन ने पाटलिपुत्र को एक शक्तिशाली शहर बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
इसके अतिरिक्त, जैन ग्रंथों में उदायिन को जैन धर्म के प्रति झुकाव रखने वाला बताया गया है। कुछ कथाओं के अनुसार, वह जैन मुनियों के संपर्क में आए और उनकी शिक्षाओं से प्रभावित हुए। हालाँकि, यह कहना मुश्किल है कि उदायिन ने पूरी तरह से जैन धर्म स्वीकार किया था या नहीं, लेकिन यह स्पष्ट है कि वह जैन धर्म के प्रति सहानुभूति रखता था।
संक्षेप में, जैन ग्रंथों में उदायिन को पितृभक्त होने के साथ-साथ एक महत्वाकांक्षी शासक, कूटनीतिज्ञ और धार्मिक झुकाव रखने वाले व्यक्ति के रूप में चित्रित किया गया है, जिसने पाटलिपुत्र को एक महत्वपूर्ण शहर बनाने में योगदान दिया।