जैन धर्म के प्रथम थेरा या मुख्य उपदेशक 'आर्य सुधर्मा' थे। आर्य सुधर्मा, महावीर स्वामी के निर्वाण के बाद जैन समुदाय के नेतृत्वकर्ता बने। वे महावीर स्वामी के प्रमुख शिष्यों में से एक थे और उन्होंने उनके उपदेशों को आगे बढ़ाने और जैन धर्म के सिद्धांतों को व्यवस्थित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। शिष्य परंपरा: आर्य सुधर्मा, महावीर स्वामी के 11 गणधरों (प्रमुख शिष्यों) में से एकमात्र थे जो महावीर के निर्वाण के बाद जीवित रहे। जैन आगमों का संकलन: उन्होंने अन्य शिष्यों के साथ मिलकर जैन आगमों (पवित्र ग्रंथों) को संकलित करने और व्यवस्थित करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। माना जाता है कि सुधर्मा ने महावीर के उपदेशों को मौखिक रूप से अपने शिष्यों को दिया, जिन्होंने उन्हें आगे बढ़ाया और अंततः लिपिबद्ध किया गया। नेतृत्व की भूमिका: महावीर स्वामी के बाद, जैन संघ को एकजुट रखने और जैन धर्म के सिद्धांतों को प्रसारित करने की जिम्मेदारी आर्य सुधर्मा पर थी। उन्होंने सफलतापूर्वक समुदाय का मार्गदर्शन किया। उत्तरवर्ती थेरा: आर्य सुधर्मा के बाद, जम्बूस्वामी जैन संघ के प्रमुख बने। इस प्रकार, आर्य सुधर्मा ने जैन धर्म के शुरुआती इतिहास में एक महत्वपूर्ण कड़ी के रूप में कार्य किया। संक्षेप में, आर्य सुधर्मा न केवल महावीर स्वामी के एक महत्वपूर्ण शिष्य थे, बल्कि उन्होंने जैन धर्म के सिद्धांतों को संरक्षित करने और प्रसारित करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिससे वे जैन समुदाय के प्रथम थेरा के रूप में प्रतिष्ठित हुए।

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