जैन धर्म के 10वें तीर्थंकर शीतलनाथ थे। उनका जन्म इक्ष्वाकु वंश में माघ मास के कृष्ण पक्ष की द्वादशी को भद्रिका नगरी में हुआ था। उनके पिता का नाम राजा दृढ़रथ और माता का नाम सुनंदा देवी था। शीतलनाथ का चिह्न 'श्रीवत्स' है, जो समृद्धि और शुभता का प्रतीक है। कहा जाता है कि शीतलनाथ ने लम्बे समय तक सांसारिक जीवन व्यतीत करने के बाद वैराग्य धारण किया और कठोर तपस्या की। अपनी तपस्या के बल पर उन्होंने पौष मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को कैवल्य ज्ञान प्राप्त किया। इसके बाद उन्होंने अपने ज्ञान का प्रसार किया और लोगों को जैन धर्म के सिद्धांतों का पालन करने के लिए प्रेरित किया। अंत में, सम्मेद शिखर पर उन्होंने निर्वाण प्राप्त किया। शीतलनाथ के जीवन से हमें त्याग, तपस्या और करुणा का संदेश मिलता है। जैन धर्म में उनका महत्वपूर्ण स्थान है और उन्हें मोक्ष के मार्ग पर चलने वाले साधकों के लिए एक प्रेरणा स्रोत माना जाता है।

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